पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/३६२

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तिम् ( ३५५ तिम् ( धा० पर० ) [ तेमति, तिमित ] नम करना ! गीला करना । तिमिः ( पु० ) १ समुद्र | २ मत्स्यविशेष | -कोयः, ( पु० ) समुद्र 1-ध्वजः, (पु० ) एक दैत्य जिसे इन्द्र ने महाराज दशरथ की सहायता से मारा था। तिमिगिलः ) ( पु० ) एक विशाल मय जो तिमि तिमिङ्गिलः ) मत्स्य को भी खा डालता है। तिमित (वि० ) : गतिहीन स्थिर अचल गीला | नम । तर । ) तीक्ष्ण 1 – किङ्गु, खलिः, -खली, (श्री०) या चूर्ण, ( न० ) खल जो पशुओं को खिलायी जाती है । तैलं, ( म०) दिली का तेल तारपीन पम् (न० ) चन्दन (स्त्री० [१] चन्दन का दूध / २ तारपीन ( पु० ) तिल का तेल (स्नेहः, ( पु० ) तिली का तेल 1- होमः, ( पु० ) तिल की आहुति । - रसः, | तिजंदुदः ) 1 २ ३ - - तिरस् (थल्यया०) १ तिरछेपन से । टेड्डेपन से । २ विना रहिन ३ गुप्तरीत्या अश्य रूप से। तिरयति (क्रि०) १ छिपाना । गुप्त रखना । २ रोकना । अड़चन डालना बाधा देना। ३ जीत लेना। तिर्यक (अन्य ) टेपन से । तिर्यच् (वि० )[ तिरश्वी-तिर्यची ] १ टेड़ा | तिरछा । बौंका | २ मुदा हुआ। भुका हुआ । ( पु० न० ) पशु । यही -अन्तरं, ( म० ) अ चौड़ाई । श्रयनं, (न० ) सूर्य की वार्षिकगति। -ईस, (बि०) भेड़ा | ऍवाताना - जातिः, ( पु० ) पशु जाति -प्रमाणं, (न०) चौदाई -प्रेक्षणं, (न० ) कनखियों देखना | faceी आँख कर देखना /-योनिः, (स्त्री ) पशु पक्षी जाति । –स्रोतस्, (पु० ) पशु सृष्टि | तिलः ( पु० ) १ तिल का पौधा २ तिल बीज | ३ शरीर पर का तिल या मस्सा ४ तिल के समान छोटा टुकड़ा अबु- उदकं, (न०) विस मिश्रित जल, जो तर्पण के काम में धाता है।- उत्तमा, (स्त्री० ) एक अप्सरा का नाम - श्रोदनः (पु०) श्रोदनं (२०) तिल चावल की खीर। कालकः, (पु० ) मस्सा | तिल । तिमिर (चि० ) काला । अन्धकारमय । तिमिरः ( पु० ) ) १ धंधकार २ अन्धापन विगिरम् ( न० ) ) लोहे का मोर्चा बुदु (४०) - रिपुः (१० ) सूर्य : तिरची (स्त्री० ) किसी जानवर, पक्षी या जन्तु | तिलकः (१०) : वृद्ध विशेष : की मादा । तिरश्चोन (वि० ) टेका। तिरछा । (पु० ) प तिलुन्तुदः } (४०) देखी। तिलशः (अन्य ) अत्यन्त अल्प परिमाण में । तिल्वः (पु०) लोभ का प तिलकं ( न० ) १ मूत्रस्थली २ फुप्फुस फेंफना | ३ लवण विशेष - आश्रयः, (पु० ) माया शरीर पराठा (पु.) मस्तक पर का सा काला चिन्ह विशेष तिलक था टीका। तिलका ( श्री० ) गुंज | विजित्सः (पु०) बड़ा सर्प । | तिठ (अध्यया० ) यह समय जब दूध देने को गौ खड़ी होती है। समस्या के घंटा या डेढ़ घंटे बाद का समय। तिष्यः ( पु० ) पुष्य नक्षत्र | २७ नक्षत्रों में से आठवाँ नत्र | २ पौष मास । तिष्यम् ( न० ) कलियुग | | तीक् (धा० आत्म० ) [ तोकते ] जाना। चलना। तीक्ष्यण (वि०) १ पैना | सीव्र २ गर्म ताता १३ उम प्रचण्ड ४ कहा ज़ोरदार हद २ कर्कश टेड़ा ६ कठोर ७हानिकर। अशुभ | विषैला | कुशाग्र | ३ बुद्धिमान । चतुर । १० दाही | १३ त्यागी भक्त । अंशुः, (पु० ) सूर्य २ अग्नि ।ध्यायसं (म० ) ईस्पात कोदा - उपाय:, (५०) उमसाधन--कन्दः, ( 50 ) लहसन 1-कर्मन, ( वि० ) क्रियाशील | स्पर्धामान् /- दंड, (४० ) चीता /-धारः, (पु०) सलवार । -पुष्पं, (न०) लौंग (दुष्पा, (स्त्री०) १ लौंग का पौधा २ केतकी का पौधा | ~बुद्धि, (वि०) तेज़ अक्ल का। चतुर।-रश्मिः,