( २५३ ) 1 कोशनिक [[आधुनिक] अर्थसचिव | २ कुबेर अगाः ( पु० ) धनागार | खजाना | कारः, (पु० ) स्यान या परतला बनाने वाला २ डिक्शनरी बनाने वाला ३ कोका के भीतर का रेशमी कोड़ा | ४ कोशावस्था कोशवासो | तितली आदि जिनके पर न आये होकारकः ( पु०) रेशम का कोड़ा-कृत्. ( पु० ) गन्ना | गृहं, ( न० ) खजाना। -ब ( पु० ) सारस | -नायकः, पानः, ( पु० ) सजानची । भंढारी-पढक, -पेटकम्, (नः ) तिजोरी । काफर /- वासिन, (पु० ) कोशस्थ जीव । - वृद्धि, (स्त्री० ) १ धन की वृद्धि | २ अण्डकोश की वृद्धि । -शायिका, ( खी० ) स्यान में रक्खी चुरी-स्थ. (वि० ) स्थान वालो 1 स्था ( पु० ) कोशवासी जीव ।-हीन, ( वि० ) गरीब । धनहीन | कोशलिक ( न० ) घूस रिश्वत कोशात किनु (पु०) व्यापार व्यवसाय | विजारत। २ व्यापारी सौदागर । ३ वाड़वानल | कोशिन् कोपिन् ( पु० ) आम का पेड़ | कोष्ठं ( न० ) १ घेरे को दीवाल। हाते की दीवाल छारदिवारी २ छिलका या खोला। कौतुक कोहलः (स्खो०) १ काहिली | बाय विशेष २ शराब | कौकुटिकः ( पु० ) : चिड़ीमार | २ वह साधु जो चलते समय ज़मीन की ओर दृष्टि रखता है जिससे कोई जीव उसके पैर से न कुंचले ३ दम्भी । पाखण्डी | कौक्ष (वि० ) [स्त्री० कक्षो ] पेड़ की कुछ की। कौय (वि० ) [ स्त्री० कौयी ] कुचवाला | पेट बाला। २ स्थान वाला। काँक्षेयकः ( पु० ) तलवार | खाँड़ा। कौकः कः 2 (पु० ) कोण देश और काँकणः - कौणः ) वहाँ के अधिवासी । | कौट (वि०) [स्त्री० कोटी] १ स्वतन्त्र | मुक्त २ घरेलू ३ बेईमान चुली ४ जल में फंसा हुआ। --जः, (पु०) कुटुज वृत-तक्षः, (पु०) स्वतन्त्र बदई (ग्रामतः का उल्टा) | ~साक्षिन्, ( पु० ) झूठा गया ।- साध्यं ( न० ) झूठी या जाली गवाही । [देना | २ झूठी गवाही (पु०) बहेलिया । चिड़ीमार | फन्दे में फंसानेवाला। जाल में पकड़ने वाला। J कोण (वि०) गुनगुना कुनकुना ( थोड़ागरम तत्ता कोणणं ( ५० ) गर्मी । अप्मा कोसलः ) ( पु० ) ( बहुवचन ) देश विशेष धौर कोशलः ) वहाँ के अधिवासी कासला } ( स्त्री० } अयोध्या नगरी । कौटः (पु० ) १ जाल | छल । कूठ | कौट किक: ) कौटिक चिड़ीमार कसाई | वधिक । 2 I कौटिलिकः ( पु० ) १ शिकारी व्याध २ लुहार कौटिल्यं (म०) १ छुटिलता | २ दुवा ३ वेईमानी। जाल खुल । कोट: ( 50 ) १ शरीर का कोई भाग जैसे हृदय, फेंफड़ा, आदि। २ मेदा पेटू ३ भीतर का कमरा | ४ अन्नभाण्डार /- आगारं, ( न० ) भागवार । भण्डरी। -अग्नि, (पु०) [ नीतिकार। कौटिल्य ( 30 ) चाणक्य का नाम । एक प्रसिद्ध कौटुंब ) ( वि० ) [ स्त्री०-कौटुम्बी ] गृहस्थोप- कौटुम्ब योगी। गृहोपयोगी | - अझ पचाने वाली शक्ति पालः, ( पु० ) १ खजानची । भंडारी । २ चौकीदार । कौटुम्बम् } (न०) पारिवारिक सम्बन्ध । रिश्तेदारी । कोष्ठकं ( न० ) इंट चूने का बना हौद जिसमें पशु कोटुम्बिक | पारिवारिक । परिवार कौटुंबिक ) ( वि० ) [ स्थी० सम्बन्धी । बी] पानी पीवे । कौटुंबिकः कोष्ठकः ( पु० ) १ अनाथ का भावदार | भंडारी | २ | कोविक : } ( 50 ) पिता या घर का बढ्ा जुड़ा । हाने की दीवात। धारदीवाली । कोण (पु० ) (पु०) भीष्म | राक्षस दानव दैत्य •दन्तः कौतुकं (न० ) 1 अभिलाषा | कुतूहल ३ इच्छा । २ कौतुक कोई वस्तु ४ विवाहसूत्र जो कलाई पर बाँधा जाता है । ५ विवाह में एक विधि विशेष ६ उत्सव महोत्सव विवाहादि
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