श्रजन अजन ( वि० ) निर्जन ( चियावान ) । जहाँ एक भी जन न हो। अजनाभ ( ५० ) भारतवर्ष का प्राचीन नाम | अजनाभ था। अजनिः ( स्त्री० ) राखा। सड़क। अजन्मन् (वि० ) अनुत्पन्न धजन्मा जीव की उपाधि । ( पु० ) अन्तिम परमानन्द मोक्ष | अजन्य (वि० ) उत्पन्न किये जाने के या होने के यो। मनुष्य जाति के प्रतिकूल (~-म् (न०) दैवी उत्पात् । दैवी उपद्रव भूचाल आदि । प्रजपः ( पु० ) १ वह ब्राह्मण जो सन्ध्योपासन यथा- विधि नहीं करता । जप न करने वाला | २ बकरे | पालने वाला। बकरे चराने वाला ३ अस्पष्ट पढ़ने चाला। । गायत्री। जिसका यजपा ( स्त्री० ) देवता विशेष अप श्वास प्रश्वास के साथ स्वयं होता रहता है। श्रजपात् ( पु० ) १ पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र २ ग्यारह रूद्रों में से एक का नाम अजमक्ष ( पु० ) बवूर अजंभ, अजम्भ (वि०) कतरहित 1-मः ( 50 ) १ मेंडक | २ सूर्य | बालक की वह अवस्था जब उसके दाँत नहीं रहते। अजय (वि० ) जो जीता या सर न किया जा सके। -यः ( पु० ) हार। शिकस्त ।-या ( स्त्री० ) भोग | अजय्य (वि० ) अजेय जो जीता न जा सके। अजर (वि० ) १ जो बूढ़ा न हो। सदैव युवा | २ अविनाशी । जिसका कभी नाश न हो। रा ( पु० ) देवता-मू (न० ) परवक्ष अजयम् ( न० ) मैत्री | दोस्ती । अज (वि० ) निरन्तर सन्तत सदा त्रिकाल में स्थितशील । अजहत्स्वार्था ( स्त्री० ) उसयाविशेष 1 इसमें लक्षक शब्द, अपने वाच्यार्थ को न छोड़कर कुछ भिन्न - अथवा अतिरिक्त अर्थ प्रकट करता है। इसका उपादानलक्षण भी नाम है। अजिर अजहल्लिङ्गम् (न० ) संशाविशेष जो विशेषण की तरह व्यवहत होने पर भी अपना लिङ्ग न बदले। अजहा (स्त्री० ) कँछ । कपिकच्छुक । शुकशिम्बी नामक औषध | यजा १ सांख्यदर्शनानुसार प्रकृति या माया | २ वकरी । -गलस्तनः ( पु० ) बकरी के गले के थन । इनकी उपमा किसी वस्तु की निरर्थकता सूचित करने में दी जाती है। जीवः, पालक (पु०) जिसकी जीविका बकरे बकरियों से हो यकों की देड़ | - - प्रजाजि:अजाजी (स्त्री०) काला जीरा। सफेद जीरा। अजात (वि० ) अनुत्पन्न | जो अभी तक उत्पन्न न हुआ हो। -अरि, -शत्रु (त्रि०) जिसका कोई शत्रु न हो। ( पु०) १ युधिष्टिर की उपाधि । २ शिवजी तथा अनेकों की उपाधि - ककुत्, द् ( पु० ) छोटी ऊमर का बैल, जिसके कुव्व न निकला हो। बड़ा| व्यञ्जन (वि० ) जिसके स्पष्ट चिन्ह (डाड़ी मं आदि ) पहिचान के लिये न हो। - व्यवहारः ( पु० ) नाबालिग़ | अवयस्क । अजानिः ( पु० ) रहुआ। जिसकी स्त्री न हो। स्त्री रहित । विधुर | अजानिक ( पु० ) बकरों की हेद अज्ञानेय ( वि० ) कुलीन उत्तम या उथ कुल का । निर्भय ( जैसे घोड़ा)। 1 अजित (वि० ) अजेय। जो जीता न जा सके। -तः (पु०) विष्णु, शिव तथा बुध की उपाधि विशेष अजिनम् ( न० ) १ चीता शेर हाथी भात्रि का और विशेष कर काले हिरन का रोंएदार चमहा, जे आसन अथवा तपस्वियों के पहिनने के काम आता था। २ एक प्रकार का चमड़े का थैला या धौंकनी। -पत्रा-त्री-त्रिका (स्त्री०) चिमगादव। चिमगीदह । -योनि: ( पु०) हिरन या बारहसिंहा / वासिन् ( वि० ) मृगचर्मधारी | -सन्धः ( पु० ) लोमनिर्मितवस्त्र व्यवसायी पशमीना या शाल बेचने वाला। 1- प्रजि ( (वि०) १ तेज़ । फुर्तीला । शीघ्र - म् (न०) : यौगन चौक | अखाड़ा २ शरीर |
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