आस्य स्य ( न० ) १ मुख । ड़ाड़ें । २ चेहरा ३ मुख का वह भाग जिससे वर्ण का उच्चारण किया जाता है। ४ छेद । आासवः, ( पु० ) थूक । खकार - पत्रं, (न० ) कमल --लाङ्गलः, ( 30 ) । कुत्ता । २ शूकर ।-लोमन् (न० ) डाड़ी । स्यन्दनम् ( न० ) बहना । टपकना । आस्पंधय ( वि० ) चूमा चुम्बन आनं (न० ) खून 1 लोहू | रक्त । आपः ( पु० ) रक्त पीने वाला प्रास्त्रवः (पु० ) १ पीड़ा कष्ट राक्षस | दुःख २ बहाव । दौड़ | ३ निकास । ४ अपराध रोप | ५ चुरते हुए चावल का फेन । [ कष्ट । श्रावः (पु०) १ घाव। २ बहाव थूक | ४ पीड़ा | आस्वादः (पु० ) १ चखना | खाना | २ सुस्वाद । स्वादनम् (न०) चखना। खाना । (०) भर्त्सना । उग्रता । प्रभुत्वसूचक अव्ययात्मक सम्बोधन | (व० कृ० ) १ पिटा हुआ । चोट खाया हुआ। २ कुचला हुआ | ३ चोटिल | मरा हुआ | ४ (गणित में) गुणा किया हुआ। ५ (पाँसा) फेंका हुआ । ६ मिथ्या उच्चारित आाहतः ( पु० ) ढोल । [ असम्भव कथन । (न० ) १ कोरा कपड़ा | २ बेहूदा कथन । आघात | २ प्रहार । ३ प्राइतिः ( स्त्री० ) लठ्ठ । डंडा । [ चाला | आहर (वि० ) लाने वाला। जाकर लाने वाला लेने हर (पु० ) १ ग्रहण | पकड़ । २ परिपूर्णता । किसी कार्य को करने की क्रिया ३ बलिदान । र (न० ) १ छींनना। हरलेना। स्थानान्तरित करना। अपनयन ३ ग्रहण लेना | ४ विवाह में दिया जानेवाला दहेज़ " सत्वानुरूपाणी कृतश्रीः । रघुवंश | हवः (पु० ) १ युद्ध | लड़ाई २ ललकार । चुनौती ||३ यज्ञ | होम आहवनम् ( न० ) यज्ञ । होम | व्याहवनीय ( स० का० कृ० ) हवन करने योग्य । आन्हिक हवनीयः (पु० ) गार्हपत्याग्नि से लिया हुआ अभिमंत्रित अग्नि, जो यज्ञ करने के लिये यज्ञ- मण्डप में पूर्व दिशा में स्थापित किया जाता है। श्राहारः ( पु० ) १ लाना । हरलाना । २ भोजन करना। ३ भोजन 1-पाकः, ( पु० ) भोजन की पाचन क्रिया / – विरहः, (पु० ) फाँका । कड़ाका लँघन - सम्भवः, ( पु० ) खाये हुए पदार्थों का रस | आहार्य ( स० का० कृ० ) १ आहरणीय । २ पकड़ कर पास लाने योग्य | ३ कृत्रिम । बाहिरी ४ चार प्रकार के अभिनयों में से एक । ग्राहवः (पु० ) १ ढोरों को जल पिलाने के लिये कुए के पास का हौद | २ युद्ध | लड़ाई | ३ आह्वान | आमंत्रण | ४ आग | क) (०) वर्णसङ्कर विशेष | निषाद हिडिकः ) पिता और वैदेहि माता से उत्पन्न त (व० कृ० ) १ स्थापित | रखा हुआ । जसा किया हुआ। अमानतन रखा हुआ । टिकाया हुआ। डाला हुआ । किया हुआ | २ संस्कारित | - अग्नि ( पु०) अग्निहोत्री । - अङ्क, ( वि० ) चिन्हित | धग्वादार | माहितुण्डकः ( पु० ) सपेरा । मदारी । श्राहुतिः ( स्त्री० ) १ होम | हवन । किसी देवता के उद्देश्य से उसका मन्त्र पढ़ कर अग्नि में साकल्य का डालना । २ साकल्य की वह मात्रा जो एक बार हवनकुण्ड में छोड़ी जाय। अहुतिः ( स्त्री० ) आह्वान | आमंत्रण | आहे ( वि० ) सर्प सम्बन्धी । आहेयः ( पु० ) सर्प | सर्प का विष । आहो (अव्यया० ) सन्देह, विकल्प, मनव्यञ्जक अव्ययात्मक सम्बोधन | पुरुषका ( स्त्री० ) १ बढ़ी भारी अहंमन्यता | २ शेखी। अपनी शक्ति का बखान | स्थित् ( अन्यथा० ) १ विकल्प सन्देह । प्रश्न २ जानने की अभिलाषा । ३ दैनिक | न्हं (नं० ) बहुत दिवस | आन्हिक (वि०) [स्त्री०-आन्हिकी] प्रति दिन का दैनिक | नित्य प्रति होनेवाला काम ।
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