( -सायकः ( पु० ) कामदेव की उपाधि । काम देव के पास पांच वाणों का होना माना गया है। -लोचन, - नयन, नेत्र (वि० ) १ विषम- संख्यक नेत्रों वाले । २ शिव जी की उपाधि | असमंजस ) ( वि० ) १ अस्पष्ट अबोधगम्य असमञ्जस } ३ यात मूर्खतापूर्ण । असमायिन ( वि० ) जो सम्बन्ध युक्त या परंपरा गत न हो। थाकस्मिक पृथक् होने योग्य - कारणम्, (न०) न्याय दर्शन के अनुसार वह कारण जो द्रव्य न हो, गुण वा कर्म हो। समस्त (वि० ) १ असम्पूर्ण | थोड़ा सा । पूरा नहीं । २ ( व्याकरण में ) जो समासान्त न हो। ३ पृथक् । अलहदा असम्बद्ध । [ अधूरा | असमाप्त ( वि० ) जो समाप्त न हो । अपूर्ण । असमीदय (वि०) विना विचारा हुआ।-कारिन्, ( वि० ) विना विचारे काम करने वाला। असम्पत्ति (वि० ) ग़रीब । धनहीन । असम्पत्तिः ( स्त्री० ) १ धनहीनता । ग़रीबी । २ दुर्भाग्य बदकिस्मती । ३ असफलता । यसम्पूर्णता । सम्पूर्ण ( वि० ) १ जो पूरा न हो। अधूरा । २ समूचा नहीं। ३ थोड़ा थोड़ा। कुछ कुछ | असम्बद्ध (वि० ) १ जो परस्पर सम्बन्ध युक्त न हो । बेमेल । २ बेहूदा । वाहियात । जिसका कुछ अर्थं न हो। ३ अनुचित | ग़लत | असम्बन्ध (वि० ) बेमेल । सम्बन्ध रहित । सम्बाध ( वि० ) १ जो सङ्कीर्ण न हो । प्रशस्त । चौड़ा | २ जो मनुष्यों की भीड़भाड़ से भरा न हो। एकान्त । ३ खुला हुआ। जहाँ हरेक की गम्य हो । असम्भव ( वि० ) जो सम्भव न हो । जो हो न सके। नामुमकिन । ११३ ) असम्भव्य ( वि० ) १ नामुमकिन । अस म्भव । २ अबोधगम्य सम्भावना ( स्त्री० ) सम्भावना का अभाव | अभवितव्यता । अनहोनापन । असाघनीय असम्भृत (वि० ) १ जो बनावटी उपायों से न लाया गया हो ! जो बनावटी न हो । नैसर्गिक । प्रक- त्रिम | सहज । २ जो भली भाँति पाला पोसा न गया हो । [ २ अनभिमत | विरुद्ध । असम्मत (वि० ) १ जो पसंद न हो। नापसंद । अतः (पु०) वैरी विरोधी (चतुदोषैरसम्मतान्) ~~आदायिन, (वि० ) चोर | असमातिः ( स्त्री० ) १ सम्मति का अभाव | विरुद्ध मत या राय । २ नापसंदगी । अरुचि । असम्मोहः ( पु० ) १ मोह का या भ्रम का अभाव । २ दृढ़ता । शान्ति । चित्त की स्थिरता । ३ वास्त- विक ज्ञान । असम्यच् (वि ) [ स्त्री० -असमोची ] s खराब । कुरिसत । अनुचित । अयुद्ध | २ असम्पूर्ण अचूरा | असलम् ( न० ) १ लोहा । २ किसी अस्त्र को छोड़ते समय पढ़ा जाने वाला मंत्र विशेष । ३ हथियार । सवर्ण (वि० ) भिन्न जाति या वर्ण का । असह (वि० ) असह्य । जो सहा न जाय । जो बरदाश्त न हो। [ ईर्ष्या । (वि०) असहिष्णु । ईर्ष्यालु । डाही । असहन: ( पु० ) शत्रु । बैरी । असहनम् (न० ) असहनशोलता । असन्तोष असहनीय प्रसहितव्य जो सहन न किया जा सके। प्रसह्य असहाय (वि० ) १ मित्रशून्य एकान्ती। अकेला । २ विना साथी संगी या सहायक का [अगोचर । साक्षात् (अव्यया० ) जो नेत्रों के सामने न हो । प्रसाक्षिक (वि० ) [ स्त्री०–प्रसाक्षिकी ] जिसका कोई गवाह न हो। असाक्षिन ( वि० ) १ जो चश्मदीद गवाह न हो । २ जिसकी गवाही प्रमाण स्वरूप ग्रहण न की जाय । ३ जो किसी प्रामाणिक पत्र को प्रामाणित करने का अधिकारी न हो। प्रसाधनीय असाध्य ( वि० ) १ जो साध्य न हो। जिस 5 पर वश न चले । सिद्ध न होने योग्य । २ जो ठीक न हो। सं० श० कौ०-१५
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