पृष्ठम्:संस्कृतनाट्यकोशः.djvu/२०

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( ग्यारह ) अन्यत्र भी आचार्यों ने व्यञ्जनों के स्वर के साथ सम्बन्ध के विषय में लिखा है। कि व्यञ्जनों की स्थिति नटी जैसी है। जिस प्रकार नटी रंगमश्च पर जाकर जिसकी पत्नी का अभिनय करती है उसी की बन जाती है, उसी प्रकार व्यञ्जन भी जिल स्वर के साथ मिलते हैं उसी के उच्चारण में स्वयं को मिला देते हैं। पतंजलि ने दो नाटकों का उल्लेख तो किया है,नों और नट्याचार्यों की हीनदशा का भी विवरण दिया है। उसमें रंगोपजीवियों और पाजीवा स्त्रियों का भी उल्लेख है। इस प्रकार व्याकरण का साक्ष्य इस बात का पूरा प्रमाण है ईसवीं शती के प्रारम्भ होने के पहले भारत में नाट्यकला विकसित थी और इस दिशा में अनेक नाट्यकृतियों की रचना भी हो चुकी थी। पौराणिक साक्ष्य महाभारत में नाट्यसम्बन्धी नट, सूत्रधारशैलूष इत्यादि शब्द तो मिलते हैं, किन्तु उसमें पाश्चात्य विद्वानों की मान्यता के अनुसार इस विषय में कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि महाभारतकार नाट्यकला से परिचित था या नहीं। इस विषय में महाभारत के परिशिष्ट हरिवंश में स्पष्ट रूप में नाट्यकला के विषय में कई अध्याय व्यय किये गये हैं। हरिवंश पुराण नाटक की सत्ता से ही नहीं उसके कतिपय भेदों से भी परिचित है। इसमें विष्णुवर्व के ८८८९९३९७ अध्याओं में नाट्यकला का उल्लेख किया गया है। प्रद्युम्न प्रभावती विवाह के प्रसंग में रामायण का नाट्यरूपान्तरण प्रस्तुत किया गया। उसमें वाल्मीकि का नामोल्लेख तो नहीं है किन्तु रामायण में प्राप्त सभी विशिष्ट घटनाओं का नाटकीय विवरण है और उसमें राम के विष्णु का अवतार होने का भी चित्रण किया गया है। रामावतार का उद्देश्य राक्षसराज रावण का वध बतालाया जाता है। साथ ही दशरथ द्वारा लोमपाद को पुत्री शान्ता के प्रदान किये जाने, शान्ता द्वारा महान मुनि श्री ऋषि के लाये जाने, चरित्र के अनुसार चारो भाइयों और ऋी ऋषि के वस्त्राभरण धारण कर नटों और नर्तकों द्वारा अभिनय किये जाने का समावेश है। इस अभिनय में छलिक (हल्लीसक) नृत्य का भी प्रदर्शन किया गया जिसमें शङ्गार और वीर तथा ताण्डव और लास्य दोनों का योग रहता है। इस उत्सव और नाट्य प्रयोग में कृष्ण-रुक्मिमी, बलराम रेवती ने भी अभिनेताओं के रूप में भाग लिया। नारद ने वीणा बजाईकृष्ण ने वंशी बजाई, अप्सराओं ने मृदंग बजाया। देव गन्धर्वो ने नृत्य गीत में योगदान दिया। इस अभिनय में रामकालीन वेषविन्यास नेपथ्य विधानक्रियाकलाप, पात्रों के संस्कार इत्यादि । को देखकर ठसकी सफलता पर सारा समाज मन्त्रमुग्ध हो गया। नाटक की सफलता पर जो प्रतिक्रियायें व्यक्त की गई वे भी महत्वपूर्ण थीं। दर्शकों ने उठ उठ कर अभिनन्दन। किया। अभिनय की सफलता पर प्रसन्न होकर दर्शक भावावेश में वस्त्राभरण इत्यादि। पुरस्कार में प्रदान करने लगे। इसमें आकाशचारी विमान और हाथी भी पुरस्कार में दिये