सामग्री पर जाएँ

पृष्ठम्:श्री बहुरूपगर्भस्तोत्रम्.djvu/५

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् परिष्कृतम् अस्ति

दो शब्द जिनकी पावनतम पादुकाओं का प्रातः स्मरण करने मात्र से ही भक्तजनों के समस्त पापों का प्रक्षालन होता है, उन्हीं गुरुवर्य शैवरूप श्री स्वामी ईश्वर- स्वरूप जी की आज्ञा से दो शब्द लिखने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। जो बहुरूपगर्भस्तोत्र पहले कश्मीर में छपा था उसमें अनेक त्रुटियां थीं वह मैंने यथासम्भव शुद्ध की हैं, और इसके साथ ही हमारे स्वामीजी के एक विद्वान शिष्य श्री मखन लाल कोकिल ने श्रीपादुका पुष्पमाला लिखी है, वह भी हमने छापी है । एवं श्री रामेश्वराचार्य जी के द्वारा विरचित श्रीगुरु- स्तुति भी सम्बन्धित है। इसके अतिरिक्त कश्मीरी भाषा में मेरी माता कमला देवी भागाती ने भी गुरु सम्बन्धी भाव पोष की रचना की है । मुझे आशा है कि यह पुस्तक हमारे गुरुदेव के भक्तों को आह्लादित करेगी। शीला मुन्शी