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पृष्ठम्:श्री अमरेश्वरदर्शनम् (अमरनाथमाहात्म्यम्).djvu/१०

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भूमिका

देवा' यत्र कृतास्पदा रुचिधरा विश्वेऽनिलाः कोमलाः
साध्याः हस्तगताः समं वसुगणैर्विद्याधराः मानवाः ।
माहाराजिकवंशजाश्च तुषिता ह्याभासुराः सज्जनाः
सेयं शक्रपुरीमतीत्य न कथं काश्मीरभू राजते ॥'
' त्रैलोक्यां' रत्नसूः श्लाघ्या तस्यां धनपतेर्हरित् ।
तत्र गौरीगुरुः शैलो यत्तस्मिन्नपि मण्डलम् ॥'

 यों तो सारे विशाल भारत की प्राकृतिक सुन्दरता पर किसी व्यक्ति- मात्र को तिलमात्र भी सन्देह नहीं है। यहां के जलवायु तथा प्राकृतिक संगठन की अनुपम सुषमा के दर्पण में समग्र विश्व का ही दर्शन मिलता है। उस पर भी इस विशाल देश ने अपने उन्नत मस्तक पर एक सुरुचि पूर्ण मुकुट धारण किया है जो काश्मीर नाम से प्रसिद्ध है। यह प्रदेश भारत के उत्तर में विद्यमान है। अपनी विशेषताओं के कारण यह देश इतना आकृष्टिजनक बन गया है कि संसार के अत्यन्त गुप्त कोनों में रहने वाले मानवों की आंखें भी यहां के पग पग के देखने के लिए नितान्त उत्कण्ठित होकर प्रतिसमय लालायित हो उठती हैं। बर्फीली पर्वतमाला की गोदी में यह नवजात शिशु की तरह स्तन्यपान कर रहा है और सौभाग्य की बात है कि आप दूरदेशों से आने के लिए अन्तः से ही प्रेरित होकर स्वयं उस पर्वत-माला के अनुपम दृश्यों को अपने नेत्रों से देख कर परमानन्द अनुभव कर रहे हैं। प्राचीन ऋषियों अथवा बड़े बड़े आचार्यों द्वारा प्रणीत ग्रन्थों में भी


2. कल्हण राजतरङ्गिणी १४४ 1. वितस्ता स्तोत्र |