श्रीः
श्रीवैखानसगृह्यसूत्रोपोद्घाते
दशविधहेतुनिरूपणे
विषयसूचिका
मङ्गलाचरणम् |
१ |
व्याख्यानकर्तृगोत्रनामादि |
१ |
वैखानससूत्रस्य तदनुयायिनां च सर्वोत्कृष्टत्वे दशविधहेतूनां निर्देशः |
२ |
विखनश्शब्दार्थनिर्णयः |
२ |
नारायणस्य विखनो वैखानसादिशब्दवाच्यत्वम् |
२ |
ब्रह्मणो मुनिशब्दवाच्यत्वम् |
२ |
इतिहासपुराणाभ्यामेव वेदार्थस्य निर्णेयत्वम् |
३ |
विखनश्शब्दनिर्वचनम् |
४ |
जगत्सृष्टिप्रयोजनम् |
४ |
समष्टिसृष्टिलक्षणम् |
४ |
व्यष्टिसृष्टिलक्षणम् |
५ |
अण्डोत्पत्त्यादिप्रकारः |
५ |
ब्रह्मणोऽण्डादिषूत्पत्तिप्रकारः |
६ |
एकस्य ब्रह्मणः नाभ्यामण्डे च उत्पत्तिः |
७ |
चतुर्मुखस्य वैखानसादिशब्दवाच्यत्वम् |
७ |
श्रीरङ्गे वैखानसार्चनम् |
८ |
श्रुत्युक्तः वैखानसानामुत्पत्तिप्रकारः |
८ |
सनकादिसृष्टिप्रकारः |
९ |
वैखानसानामाचार्यपुरुषत्वम् |
१० |
वैखानसानां त्रिशुक्लत्वम् |
१० |
आनन्दसंहितानुसारेण वैखानसोत्पत्त्यादिकम् |
१० |
- सनकादिसृष्टिः |
११ |
- दक्षादिमुनिदशकसृष्टिः |
१२ |
- वैखानसस्य मुनिश्रेष्ठत्वम् |
१२ |
- वैखानसस्य गर्भवैष्णवत्वम् |
१३ |
- वैखानसानामद्वारकभगवद्यजनेन नित्यकर्मानुष्टानपूर्णता |
१३ |