पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/९८

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80 ब्रह्मलोकं गमिष्यामः सर्वे वयमतः परम् । स एव वेत्ति तत्सर्वं सर्वलोकपितामहः ।। ३० ।। इत्युक्त्वा नारदेनैव सह लोकं स्वयम्भुवः । ययुः शीघ्र सुराः सर्वे मुनयो योगिनोऽपि च ।। ३१ ।। अब हम सब मिलकर ब्रह्मलोक चलें, सारे संसार के पितामह ब्रह्मजी ही सब कुछ जानते हैं । यह निश्चय कर श्री नारदमुनिजी के साथ सभी ऋषि, मुनि, देवता, योगिगण अति शीघ्र ब्रह्मलोक को चले गये । (३०-३१) ब्रह्मलोकं समागम्य ददृशुस्तेऽमितौजसः । चतुर्मुखं चतुर्वाहुं ज्वलन्तमिव पावकम् ।। ३२ ।। सम्भूय वेदशास्त्रौघं मूर्तिमन्तमिव स्थितम् । गायत्र्या चैव सावित्र्या सरस्वत्या च सेवितम् ।। ३३ ।। किन्नरोगगन्धर्वसिद्धस वेदैः सविग्रहैश्चैव शास्त्रैरपि च सेवितम् ।। ३४ ।। सेवितं च दिशापालैरासीनं परमासने । उपसृत्य तु तं देवाः प्रणेमुर्मुनयोऽपि च ।। ३५ ।। आसनेषुपविष्टास्ते सुराश्च मुनयोऽपि च । पृष्ठाश्च स्वागतप्रश्नैरिदं वचनमब्रुवन् ।। ३६ ।। वे अमित तेजस्वी ब्रह्मलोक में पहुँचकर चतुर्मुख चतुर्वाहु, मानों जलती हुई अग्नि रूप तथा मूर्तिमान, वेदादि समस्त शास्त्र रूप, गायत्री, सावित्री, सरस्वती तीनों महादेवियों से सेवित तथा दशीं दिक्पालों से सेवित, परमोत्तम आसन पर बैठे हुए श्री ब्रह्माजी को देखा जो किन्नर, नाग, गन्धर्व, सिद्ध संघों से सेवित तथा मूर्तिमान वेद-वेदान्त शास्त समुदाय से भी सेवित थे । उनके निकट पहुँचकर सबों ने प्रणाम किया और सभी देवता तथा मुनिगण आसन पर बैठ गये । तब स्वागत कुशलादि पूछने के बाद वे लोग वचन बोले । (३२-३६)