पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/९२

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

74 शेषाद्रि का इस तरह का प्रभाव है, जिसमें जगन्मय भगवान नित्यमुक्त ज्ञानियों के साथ लीला से क्रीडा करते हैं। उसी नील मेध के समान श्यामवर्ण, नील कमलाक्ष नीलगिरि शिखरस्थ भगवान का सुस्थित होकर मैं यहाँ भजन करता है । (३६-३७) गुहाख्यानं श्रुतं किं वा ? युष्माभिर्वीतकल्मषैः । शृण्वतामिदमाख्यानं कलिदोषमलापहम् । धन्यं यशस्यमायुष्यं पुत्रपौत्राभिवर्धनम् ।। ३८ ।। इतीरितः शेषगिरेः प्रभाव श्रुतो मया योगिवरेभ्य आदरात् । समस्तजीवात्मसमष्टिरूपिणो हरेः प्रभावोऽपि करीन्द्रगोप्तुः ।। ३९ ।। क्या निष्कल्मष होकर आप लोगों ने गुहाख्यान सुना ? यह आख्युना श्रोताओं के कलिदोष रूप मल का नाशक और धन, यज्ञ, पुत्र, पौत्रादिकों को बढ़ानेवाला है। जिस प्रकार योगि श्रेष्ठों से आदरपूर्वक मैंने सुना था उसी प्रकार शेषाचल का प्रभाव तथा समस्त जीवों के समष्टिरूप, गजेन्द्र की रक्षा करनेवाले विष्ण भगवान का वर्णन किया । (३८-३९) इति श्री वाराहपुराणे श्री वेङ्कटाचलमाहत्म्ये वैकुण्ठगुहाप्रविष्ठवानरवृत्तान्तादिवर्णनं नाम द्विचत्वारिंशोऽध्यायः अत्र दशमः