पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/७४९

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

731 तब कुछ दुःखी होकर वह ब्राह्मण वधन बोला और उस श्रेष्ठ राजासे कुशल पूछा । मेरी स्वी पूर्व में गणिी थी । उसके पुत्र व कन्या क्या जना है ? मैं अग्रे चित्त को सन्तोष देनेवाली उनशी वस नहीं सुनता हूँ । हे राजन ! मेरा पुत्र निर्गुण (बिना गुणञ्चा) है एवं तड़ाग, पुष्करिणी अथवा बहुत जल में सदा खेल में ला रहता है। हे विशांपति स्वासी ! इसलिए मेरे मन में सदा चिन्ता रहती है। हे श्रेष्ठ राजा ! मेरी सुन्दरी स्त्री मेरे दर्शन के लिये क्यों नहीं आयी : मेरा मन् घूम रहा है । पुत्र और गभिणी स्त्री की सदा चिन्ता करता हूँ । उस ब्राह्मण के इयन को श्रीरतापूर्वक सुनकर तोण्डमान दोला और धीर मनुष्य के समान् स्यिर रहा । तोण्डमान उवाच 'भो भूसुरकुलोत्पन्न ! मा भैषीः पुत्रकारणात् । क्षेमं प्रसूता ते भन्य पुत्र्या पुत्रेण तिष्ठति ।। ११६ ।। बहवो योषितो विप्र ! मया दृष्टा इतः पुरा । न सुतो न च ते भार्या मम् दृष्टिपथं गता ।। ११७ ।। तोण्डमान बोले-हे ब्राह्मणकुल उत्पन्न ! पुत्रके कारण आप सस डरिये; आपकी भाय सुखसे प्रसव करके पुत्रौ चौर पुद्रकै साथ है। हे ब्राह्मण ! इसके पहले मैंने बहुती स्त्रियोंको देखा : किन्तु न तो आपका पुत्र ही और न आपकी स्त्री ही देख पड़ी। (११७) अथ तद्वृत्तमखिलं श्रूयतां भूसुरोत्तम । पूर्वदेवगुरोर्वारः सम्प्राप्तस्तु गते दिवे ।। ११८ ।। तद्दिने वेङ्कळेशस्य प्रसक्तमभिषेचनम् । नार्थ मे कन्याः सर्वा जग्मुर्महीसुर ।। ११९ ।। ताभिः समेता ते भाय पुत्रीपुत्रसमन्विता । जगाम वेङ्कटं शैलं देवदर्शनकारणात् ।। १२० ।। (११५) अद्य श्धो वा परश्वो वा साऽऽगमिष्यति तेऽन्तिकम् ।