१४ क्वाभी सवत्सा जगदैश्वरने उन्-उन मूर्तियोंके अभिमांनी [मन्य) देवताओं के उन-उन क्षसंकीर्ण कायॉकी झल्पनाकी और तब ब्रह्मापे उन-उन पांचमूर्ति देवों में छार देवताओंको अपने चार सुखों तथा एक श्रीवेङ्कटेश देवकी अपचे भनमें, सब. काभके महोत्सवस्वरूप श्रीनिवासकी महोत्सय-यात्रामें दीक्षित होकर पाल शिया । इसी प्रकार ब्रह्मने थालाक के उत्सवका सुम्पादन किया । (३५) नैवेद्य बहुधा चित्रं चक्रे ब्रह्मोत्सवे शुभे । गुडौदनं तिलान्न च परमान्न पयः श्रुतम् ।। ३६ ।। मुद्गाश् माषकान्न च दध्योदनमतः परम् । षड्विधानं च सापूपं सपायससुशर्करम् ।। ३७ ।। गुडापूपांस्तिलापूपान्साषापूपान्मनोहरान् । मोदकांश्च शतच्छिद्रप्रमुखान् कारयन् विधिः ।। ३८ ।। थनेक प्रकारका लैवेद्य शुभ ब्रह्मोत्सव बनाया ; गुवा औदन, तिलान् दूध में बना कुछा पायस, मूंगका अन्न, मादका अन्न, दही योदम (भात), अच्छी तरहसे शक्कर दिये हुए दूध और पूपके साथ छः प्रकारके छन्, सुस्वादु, गृक्षा पृप, तिलका पुष, माषक यूप, माषका पुप और सौ छिद्रवाला मोदक भी ब्राचे (३९) अहभकारित श्रीनिवासमहोत्सववैभवप्रकारवर्णनम् उत्सवं श्रीनिवासस्य विधियविाँ होत्सवे ।। ३९ ।। कारयामास वै वैधाः ध्वजारोहणपूर्वकम् । सायङ्काले च पूर्वेद्युश्र्वजारोहणवासरात् ।। ४० ।। सवें चान्ये महष्याद्याः िवष्वक्सेनपुरःसराः ।। ४१ ।।