मुक्ताजालावृतैश्चान्यैः पद्मरागविराजितैः । वज्रवैडूर्यखचितैरिन्द्रनीलसमप्रभैः ।। २६८ ।। तथा मरकतप्रख्यैस्तोरणैरुपशोभितम् । कुंकुमोदकसम्पूर्णकनत्कनकभाजनै: ।। २६९ ।। स्त्रीभिनीराजथन्तीभिः राजमानचतुष्पथम् । वेदित्रयं परिक्रम्य वासुदेवालयं ययौ ।। २७० ।। प्रवेशयामास वरं सुमन्दिरं श्रीवेङ्कटेश बहुरत्नसम्मितम् । तद्बन्धुषण्डं मुनिवर्यगुप्तं बलं ययौ नायनिकेतदेषु।। २७१ ।। तेलसे भरे हुए 'इजारों वाथुत दश हजार) दीपकौं, लावा, पुष्प और अक्षतौंको इधर उधर विखेरनेवालों, स्तुति करते हुए वन्दिगण, सूत, और भागों, नेदध्वनिके साथ आशीर्वाद करते हुए शुकप्रमुख ब्रह्मा इत्यादि श्रेष्ठ देवताओं, वीणा, वेणु, मृदङ्ग पणव एवं आकाशदुन्दुभीको वजानेवाले मनुष्यों, वारस्ती (वेश्या), गानमें, चतुरं गन्धर्वो तथा पुत्र और मन्द्रियों के साथ श्रीनिवासको देखते हुए नगर स्त्री पुरुषोंसे घिरे धर्मात्मा श्रीनिवास के भक्त आकाशराज पद्मावती सहित उस श्रीनिवासको नारायणपुरों में चारों ओर धीरे धीरे धूमाते हुए-केलेके स्तम्भों, ईख (गन्ना) के दण्डों, पानझे पत्तों एवं आम्रपल्लवसे युक्त, अरे हुए घड़ोंसे सजे हुए मोतीफे जालके घेरेसे शोभते हुए, पद्मरागसे बड़े हुए, इन्द्रनील के समान प्रभावाले, वज और वैडूर्य जटित भरश्तक के समान प्रमाबवाले तोरणोंसे शोभित, कुंकुम और जलसे भरे हुए, चमकते हुए सोनेके भाजोंसे एवं आरती करती हुई स्तियोंसे शोभते हुए चौरहे और तीन वेदियों की परिक्रमा वारके वासुवेदके घरको गये और वर श्रीवेंकटेशं को बचेक रत्नोंसे शोभायमान सुन्दर मन्दिरमें प्रवेश कराया और उनके बन्धुवर्ग तथा मुनिदर्य अगस्यसे सुरक्षित सेना राजाडे एक-एक (२७१)