ॐ28 भेनें कृतार्थमात्मानं साफल्यं जन्मनोऽपि च कन्या बोली-इसका निवास क्षीशेषाचलपर है, इस ल्दानी श्रीवेङ्कटेश्वर है; उन्हींकी आज्ञाकारिणी यह कोई बकुलक्षालिका नामकी है। इसने कहा कि धरणी देवी के पास भेरा कुछ कार्य है, अतः हे महाभागे! उसके साथ हमलोग इस समय यहांपर तुम्हारे एास आई हैं। उसछे आनेका कारण उसी से पूछये । ऐसा कहे जानेपर वह कल्याणी बकुलासे बोली-हे भद्र! स्वच्छ रत्नोंकी पीठकर वो ! ऐसा कहे जानेपर सानन्दसे री हुई बकुला वहाँ पर बैठी और अपनेको कृतार्य एवं अपने जन्मको भी सफ़ल समझी । (७३) स्वागतं ते वरारोहे यम पुण्यसमुच्चयत् ।। ७४ ।। मन्ये कृतार्थभात्मानं सफलं साधुसङ्गमंात् । निर्देष्टव्यं भवत्कर्म तदद्य विदधीमहि ।। ७५ ।। किभर्थभामो मात: शीघ्र तत्कत्थ्यतामिति । धरणी बोली-हैं वरारोहे । मेरे पुण्य-राशिसे तुम्हारा आना शुभ ही है । साधु समागमसे मैं अपलेको कृतः मानती हूँ । शाप झफ्ना कार्य कहे; आज ही मैं उसको करूंगी । हे माता! किसलिये आयी हो से शीघ्र कही । (७५) बभाषे बकुला भार्या राज्ञस्तस्य महात्मनः ।। ७६ ।। भहात्मा राजाकी स्त्री से बकुला बोली । धरणीं. प्रति बकुलोक्तस्वागमनकाराणम् कन्यापेक्षा मुख्यकार्य पुनः कार्यशतेन किम् । मुख्यकार्य ततः श्रुत्वा बकुलायब्रवीदिदम्।। ७७ ।। (७६)