पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/५१०

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492 भागकी विधाता तू ही हैं । इसलिये लेरी सहायता करो। हे बाला ! यदि तू यह नहीं करती हो तो, मेरा मरना निश्चित है। हे कन्यत्रै ! जो उत्तम मनुष्य मृत्युके अवसर पर जीवनला उपाय करते है, वे पुण्य मार्गसे सारीपर चट्टर स्थगको जाते है । हे प्रमै और अर्थक्षे इच्छुक । तृस धर्ममार्गका इस प्रक्षार आश्रय लो । अधिक अहने से क्या? संगनकी मेरी आशा तो तुमसे पानी गयी है । हे देवी! तू ही मेरी माता, पिता, भ्राता , मातुल (मामा) तया मेरा अत्यन्त भक्त प्रह्लाद्, अक्रूर, ध्रुव, गजेन्द्र. उद्धव, किरीटी अर्जुन, बलि, अजामिल, श्रौपदी एवं विभीषण हो । तुमको देखकर मेरा मन निरन्तर हर्षको प्राप्त होता है। मेरे दुःख को छुड़ाने के लिये ब्रह्मासे वह कन्या बनायी गयी है । माङ्गल्यको दड़ाव ली कन्याको देखकर करोड़ों गो, दश सहस्र घोड़ों तथा तिलपर्वतदानके समान, सन्तोष जरूर प्राप्त होता है, इसमें उन्देह नहीं । उनसे इस प्रकार कई जानेपर वकुला देशी यह बात बोली ! (४०) बकुलोबाच कुन्नास्ते जगदाधार त्वया याऽत्र निरीक्षिता । तन्भार्ग वद गोविन्द गच्छामि करुणानिधे ।। ४१ ।। का सा पूर्व किमर्थं च कन्यका जनिता भुवि । तद्वृत्तमखिलं हि सत्येन मम केशव ।। ४२ ।। बकुला बोली-हे जगदाधार ! तुमसे जो ग्रहाँ पर देखी गयी है वह कहाँपर है? हे गोविन्द ! उस मार्गको कहिये । हे करुणानिधि ! मैं जाऊँगी ! बहु कन्था पूर्वमे कौन श्री ? किसलिये पृथ्वीपर उत्पन्न हुई है ? है केशव ! वह सब वृत्तान्त सत्य-सत्य भुझसे कट्टिये । (४२) इत्याज्ञप्तो विरिञ्चेशविनतांघ्रिसरोरुहः । उवाच भन्दं वचनं.बकुला धरणीधरः ।। ४३ ।। ब्रह्मा एवं शिवसे नमस्कृत चरणकमलवाले धरणीधर भगवान् इस प्रकार कहे जानेपर कुलासै भन्द वचन बोले । (४३)