अभिवाद्य मुनिं तेन पूजितो सुदितोऽभवत् ! माहात्म्यं सरसो ब्रूहि कमलाख्यस्य मे मुने । । ८४ ॥ तोते का वर्णित पद्मा सरोवर की महिमा ऐसा वर पाकर राजा पुनः शुकमुनि के पास गये । मुनिजी उनसे पूजित होकर जब प्रसन्न हुए तब उन्होंने पूछा-हे मुनि जी ! कमला नामक सरोबर का माहात्म्य मुझसे कहिये । श्रीशुक उवाच - पुरा दुर्वाससः शापादवतीर्णा सुरालयात् । पद्मा पद्माक्षदयिता विष्णुना सहिता नृप ।। ८५ ।। सरः काञ्चन एवाद्यभिदं प्राप्य महेश्वरी । तपश्चकार वर्षाणां दिव्यानामयुतं रमा ।। ८६ ।। श्रीशुक मुनि बोले-प्राचीनकाल में दुर्वासा ऋषि के शाप से सुरलोक के अपने दिव्य धाम से उतरकर विष्णु भगवान के साथ कमलाक्ष भगवान की पत्नी श्री रमादेवी ने उस सुवर्ण कमलपूर्ण तालाब पर पहुँचकर दश सहस्र दिव्य वर्षों तक तण्स्या की । (८५-८६ ) ततो देवा विचिन्वन्तः श्रियं विष्णुसमन्विताम् । पुरन्दरेण संयूक्ता राजन्नस्मिन्सरोवरे ।। ८७ ।। (४) स्थिता सुवर्णकमले पुण्डरीकाक्षसंयुताम् । दृष्ट्टा प्रीतिसमायुक्ताः प्रणम्याम्बुजधारिणीम् । कृताञ्जलिपुटाः सेन्द्रास्तुष्टुवुलोकमातरम् ।। ८ ।। दे राजन ! पीछे देवतागण इन्द्र के साथ, िवष्णुभगवान सहित श्री लक्ष्मीजी को खोजते-छोणते इसी तालाब में स्वर्ण कमल पर कमझाक्ष भगवान के साग बैठी