पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/३५८

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भगवान के लिए रंगादास का ट्टिव्य बगीचे इत्यादि बनाना श्रीनिवास भगवान को इस प्रकार देखकर भी रंगदास ने आश्चयित् होकर “ इन भगवान का वर्गीचा मैं बनाऊँगा ” ऐसा विचार किया ! भग में सब निश्चय कर उस सुन्दर बुद्धिवालै ने उसी वृक्ष के तले वास किया । बिष्णु भगवान के लिए प्रतिदिन वैखानस द्वारा नैवेद्य करके उस घोर जङ्गल को काटकर बगल के बड़े-बड़े गाधों को, देवसेदिड भगवान के स्थान में उत्पक्ष हुई इमली तथा श्री लक्ष्मीजी के चम्पावृक्ष को भगवदाज्ञा से छोड़कर काट डाडा । (२६-२८) देवस्य परितो भूमौ शिलाकुड्यं तदाऽकरोत् ।। २९ । तत्कुड्यस्यैव परितः पुष्पारामांश्चकार ह । मल्लिकाकरवीराब्जकुन्दमन्दारमालती ।। ३० ।। तुलसीचम्पकानां च वनान्येव चकार ह । खनित्वा तत्र कूपं तु वर्धयंस्तज्जलैर्वनम् ।। ३१ ।। आरामपुष्पाण्यादाय स्वयं दामान्यथाकरोत् । विचित्राणि तदा बद्धवा पूजकस्य करे ददौ ।। ३२ ।। भगवान स्थान के चारों ओर की भूमि में पत्थर की दीवार बना दी और उस दीवार के चतुर्दिक फलों का बगीचा बनवाया । मल्लिका, करवीर, कमल कुन्द, मन्दार, मालती-तुलसी तथा चम्पा का वन लगा दिया । वहीं पर कुआँ खोदकर उसके जल से सबको सींचकर बढ़ाने लगा । बगीचे के फूलों को लाकर उनकी माला स्वयं बनाता था । विचित्र तरह से गूंश्कर पूजारियों के हाथ में दे देता था । (२९-३२) आदाय पूजकस्तानि स्कन्धे मूध्नि बबन्ध च । श्रीनिवासस्य देवस्य श्रीभूमिसहितस्य च ।। १३ ।।