पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/३४३

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325 भगवान की बातें सुनकर शुक जी भगवान की दी हुई तुलसीभाला लेकर शीघ्र आकाशराजा की कन्या के पास गमन छिया और कस्तूरी की सुगन्धवाली तुलसीमाला देवी को देझर भगवान के शुभ व न को कहे। यह सुनकर तथा उस माला को लेकर भूमिसुदा ने उसे अपने शिरपर धर लिया और भगवान के आगमन की प्रतीक्षा करती हुई उस कन्या ने उचित अलङ्कारों को धारण किया । (६१-६३) वियद्राजोऽपि सानन्दमिन्दुमाहूय सादरम् । अन्न विधीयतां राजन्विविधं रससंयुतम् ।। ६४ ।। विष्णोनैवेद्ययोग्यं यत्परमान्न विधीयताम । देवानां च ऋषीणां च नराणामपि संमतम् ।। ६५ ।। चतुर्विधं सुगन्धाढ्यममृतांशैस्सुधाकर ! एवं कृत्वा संविधानं प्रतीक्ष्याऽऽगमनं विभोः ।। ६६ ।। सभायां मन्त्रिसहितः समाप्तं प्रीतमानसः । पुत्रीमलङ्कृतां कृत्वा धरणीसहितो नृपः ।। ६७ ।। आकाशराजा ने भी आनन्दित होकर चन्द्रमा को सादर धुलाकर कहा- हे सुधाकर ! विविध रसयुक्त अन्न बनाइये ! विष्णु को नैवेद्यायोग्य खीर, देवताओं, ऋषियों तथा मनुष्यों के मनोनुकूल चारों प्रकार की सुगन्धिपूर्ण अमृतांशों से युक्त, सब तरह का अन्न बनाइये। इस प्रकार सभी सामग्रियों का आयोजन कर, भगवान के आगमन की प्रतीक्षा में मन्त्रियों के साथ प्रसन्न मन हो पुत्री को अलङ्कारों से सुशोभित कर ध९णी देवी के साथ आकाश राजा सभा में बैठे । (६४-६७) इति श्रीवराहपुराणे भूगोलोपाख्याने धरणीवराहसंवादे श्री वेंकटाचलमाहात्म्ये उत्तरार्धे धरणीदेव्यै बकुलमालिकानिवेदित श्रीनिवासोदन्त-कमलालयकल्याणविध्यादि वृत्तान्तवर्णनं नाम सप्तमोऽध्यायः ।