पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/३३१

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पृष्टाऽवदच्च ‘भवतीं द्रष्टुमेकागऽऽतेति वै । शक्या द्रष्टुं राजगृहे मया राज्ञो मुखेन वः' ।। ३ ।। . 313 एवं पृष्टास्ततो तू ‘सहास्माभिश्च गम्यताम् । वयं तु धरणीदास्यो गमिष्यामो नृपालयम्' ।। ४ ।। इत्युक्तवाऽस्माभिरायाता त्वत्समीपं वसुन्धरे ! । भक्त्या पृच्छयतामेषा किमित्यागमनं तव' ।। ५ ।। कन्याएँ बोली-यह दिव्याङ्गना देवी अापके ही पाछ काम से आई है, देवालय में श्री विजी निकट ही इनका साथ हुआ। । यह पूछने पर बोली कि आपको ही देखने आई हैं क्षा मुझसे राजगृह में प्रधान महिषी देखी जा सकती हैं? ऐसा पूछने पर हम लोगों ने कहा कि हम लोगों के साथ चलिये ! हम लोग धरणी देवी की दासियाँ हैं और राजगृह में ही जायेंगी । हे वसुन्धरे ! ऐसा कहने पर ये हम लोगों के साथ-साथ आई ! अब आप ही से पूछी जाय की यहाँ आपका ऋागमन किस लिये हुआ है। श्रीवराह उवाच इति तासां वचः श्रुत्वा तामपृच्छद्वसुन्धरा । श्री बराह भगवान बोले-उन्की इन दातों को सुनकर धरणी देवी ने उससे पूछा । धरण्युवाच :- ‘कुतस्त्वमागता देवी ! किं वा कार्य मया तव । जूहि सत्यं करिष्यामि त्वदागमनकारणम् ।। ६ ।। धरणी देवी बोली-हे देवि ! आप कहाँ से आयी है? झापको मुझसे कौन सा काम है? आप सत्य सत्य कहें, मैं आपके आगमन के प्रयोजन को अवश्य करुंगी 41