रावण से बन्दी बनाकर यही रखी गयी थी । इसलिये लक्ष्मी के साथ आप इसको वरदान से प्रसन्न करे । अग्नि के इस वचन को सुनकर सुन्दरी सीताजी ने मुछ से कहा कि हे विभो नित्य मेरी प्रसन्नता देनेवाली वेदवती यही है। इसलिये हे देव ! इस भाग्यवती को भी वर लेवें । (२४-२६) श्रीभगवानुवाच : 'तथा देवि करिष्यामि ह्यष्टाविंशे कलौ युगे । तावदेषा ब्रह्मलोके वसत्वमरपूजिता ।। २७ ।। पश्चात्तु भूमितनया भविष्यति वियत्सुता' । इति दत्तवरा पूर्व मया लक्ष्म्या च सुन्दरी ।। २८ ।। अद्य नारायणपुरे सम्भूता धरणीतलात् । पवासमा पद्मनेत्री पत्रा दत्तवरा सती ।। २९ ।। सखाभिरनुरूपाभवन पुष्पाणि चन्वता । मृगयामटता तत्र मया दृष्टा मनोरमा ।। ३० ।। तस्या रूपं मया वक्तुं न शक्यं शतहायनैः । लक्ष्म्ये व च तया मेऽद्य सङ्गमो भविता यदि ।। ३१ ।। प्राणाः स्थिरा भविष्यन्ति सत्यमित्यवधारय । त्वं तत्र गत्वा तां कन्यां दृष्ट्वा वकुलमालिके ।। ३१ ।। जानीहि रूपलावण्यादियं योग्येति चास्य वै । अनवद्या विशालाक्षी पद्येन्दीवरलोचना' ।। ३३ ।। श्री भगवान बोले-हे देवि! अठाइसर्वे कलियुग में ऐसा ही करूंगा, तब तक यह देवताओं से पूजित होकर ब्रह्मलोक में निवास करें। पीछे यही पृथ्वी पुत्री होकर आकाशं राजा की राजपुत्री होगी। लक्ष्मी तथा मैं दोनों ने इस