235 विचित्रं तस्य चारित्रमौदार्य निस्तुलं तथा । रहस्यानि च नामानि सम्यगस्माभिरेव हि ।। ३ ।। श्रोत्राभ्यां पीतमेतत्तु वेङ्कटेशकथामृतम् । तस्माच्चक्षुर्द्धयस्यापि पिपासा तु गरीयसी ! ४ ।। अस्मांस्त्वमनुजानीहि सेवार्थ वेङ्कटेशितुः । मुनिगण बोले-हे भगवान की भक्ति रूप क्षीर सागर के लिए चन्द्रमा स्वरूप भगवन सूत जी ! श्री वेङ्कटेश का माहात्म्य, उनका आश्चर्यमय चरित्र निरुपम औदार्य, रहस्य भूत नामावली तथा कथारूपी अमृत आपने जो सब अच्छी तरह कहा, उन सबों को हम लोगों ने श्रवणपान किया । इसलिए इन आंखों की भी उनके दर्शन करने की बडी उत्कण्ठ है, अत एव आप हम लोगों को भी उनके दर्शन करने की बड़ी उत्कण्ठा है, अत एव आप हम लोगों को श्री वेङ्कटेश की सेवार्थ जाने की अज्ञा दे । (२-५) रहस्यानि च नामानि शेषाद्रेश्च तदीशितुः ।। ५ ।। स्वामिपुष्करिणीतीर्थमाहात्म्यं च प्रकाशितम् । अत्यद्भुतं हिरेर्दिव्यं कलौ माहात्म्यमेव तु ।। ६ ।। शृतं च मुनिशदल सम्यगस्माभिरेव हि । श्रोत्राभ्यां सम्यगापीतं वेङ्कटेशकथामृतम् ।। ७ ।। इत्युक्तस्तु ततः सूतः प्रोवाच मुनिपुङ्गवान् । अपने बेङ्कटाचल तथा श्री वेङ्कटेश जी का रहस्य नाम एवं स्वामिपुष्करिणी तीर्थ का माहात्म्य भी प्रकाशित कर दिया है ! कलियुग में भगवान का अत्यद्भत माहात्म्य हम लोगों ने आपसे पूर्णरूपेण सुन लिया, और इस तरह कानों द्वारा वेङ्कटेश कथाभृत का अच्वी तरह से पान किया । उनके ऐसा कहने पर श्री सूत जी पुनः उन मुनिपुंगवों से बोले ।