2008 स्वामिपुष्करिणीतीर्थसमं नास्ति च नास्ति हि' । कलियुग के दोषों से िघरे हुए, पापकर्मी मनुष्यों के िलये पृथ्वी पर श्री वेङ्कटेश भगवान को छोडकर कोई दूसरा आश्रय नहीं है। श्री वेङ्कटेश भगवान के समान पृथ्वीपर कोई दूसरा देवता नहीं है तथा स्वामि पुष्करिणी के समान कोई तीर्थ नहीं है। (३९.४०) द्रव्यार्जनपरो नित्यं भविष्यति कलौ युगे ।। ४१ ।। अनुग्रहाय लोकानां कामैः पूर्णोऽपि सर्वदा । इदं द्रव्यं त्वया तात्रदातव्यं मम सम्प्रति ।। ४२ || तवाभीष्टमहं दास्ये दास्य इत्येव च बुवन् । इति सर्वजनैः सार्ध क्रीडमानां भविष्यति ।। ४३ ।। कलो तदीयचारित्रं वक्तुं कल्पशतैरपि । न शक्यमुक्तं लेशेन चरित्र तस्य मङ्गलम् ।। ४४ ।। सर्वदा सभी कामनाओं के पूर्ण होने पर भी, लोकानुग्रह के लिये 'तुम्हें सम्प्रति इतना द्रव्य मुझ को देना चाहिए, तब मैं तुम्हारा अभीष्ट अवश्य दूंगा, अवश्य दूंगा । ऐसा बोलते हुए भगवान श्री .वेङ्कटेश, कलियुग में नित्य द्रव्य के उपार्जनपरायण ही होंगे। इस तरह सभी मनुष्यों के साथ क्रीडा करते हुए भगवान (कलियुग में) रहेंगे । कलिकाल में उनका चरित्र सैकडीं कल्पों में भी कहने में अशक्य होने से उनका परम मंगलमय चरित्र मैंने लेश मात्र ही कहा । (४१-४४) । इति श्रीवाराहपुराणे श्रीवेङ्कटाचलमाहात्म्ये श्रीवेङ्कटेशस्य कलिदोषोपहतेषु विशेषतः कृपाधिक्यवर्णनं नामाष्टपञ्चाशः