पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/१८५

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

157 अग्नि में प्रवेश करनेवाले पतङ्गो के समान आयु-क्षीण हो । ; उन्होने भी रूपी सेना में प्रवेश किया और सब चोर भस्म हो गये । उसी प्रकार उनके वंश के अन्यान्य मायावी मनुष्य, स्त्री बालक्र आदि सब चोरगण नष्ट हो गये । वह जंगल निष्कंटक तथा पशु पक्षियों से व्याप्त हो गया । श्री वेङ्कटाचल से समुद्र के तीर पर्यन्त शहर, ग्राम धर, जङ्गल, नदी एवं पहाडयुक्त सारा देश सभी प्रकार की बाधाओं हो, राहू से मुक्त से िनर्मुक्त चन्द्रमा के सभा निर्मल और आनन्दपूर्ण हो गया । सभी मनुष्य और देशवासी बहुत आनन्दित हुए। ब्राह्मण, मुनि, तथा योगिाण सभी स्तुति करने लगे ! (७-१२) निवसन्ति तदारभ्य तस्मिन्देशे हि देहिनः । तदा प्रभति तद्देश वा काले वर्षति सस्यानि फलन्ति बहुधा तदा । नीरोगाश्च जनाः सर्वे यथा कृतयुगे तथा । कुशलाः कृषिविद्यायो विप्रा वेदेषु निष्ठिताः ।। १५ ।। तपस्विनस्तपोधर्मे योगाभ्यासे च योगिनः । वाणिज्ये वणिजः सर्वे स्वस्वधर्मेषु निष्ठिताः ।। १६ ।। देशमध्ये समागत्य सुदर्शनहरिः प्रभुः । समाहूय जनान्सर्वान्वचनं चेदमब्रवीत् । कर्तव्यं भवतां किं तदस्ति चेद्वक्तुमर्हथ' ।। १७ ।। तब से उस देश में सभी प्राणी निवास करते हैं। इन्द्र उसी समय से चक्र के शासन के कारण उस देश में समय-समय पर वर्षा करने लगे, सस्य सब जोर से फलने लगा । गायें बहुत दूध देनेवाली और तालाब स्वादिष्ट जलपूर्ण हो गये । सभी जन सत्ययुग की तरह नीरोग रहने लगे ! मनुष्य कृषि-विद्या में ब्राह्मण वृन्द वाणिज्य आदि में इसी प्रकार सभी अपने धर्मो में निष्ठित हो गये । महा