140 ऊनविंशोऽध्यायः श्रीवेङ्कटेशमहोत्सववैभववर्णनम् सूत उवाच :- ब्रह्मा च वेङ्कटेशस्य दिव्योत्सवदिनेषु वै । नैवेद्य बहुधा चक्रे घृतसूपगुडोत्तरम् ।। १ ।। गुडात्रं पायसान्तं च मुद्रान्न च तिलौदनम् । शाल्यन्तं कृसरान्न च मरीच्यन्न तथैव च ।। २ ।। गोधूमान्न च माषान्तं मधुरान्तं घृतोत्तरम् । एवं बहुविधान्न च फलानि विविधानि च ।। ३ ।। व्यञ्जनानि विचित्राणि मनस्तोषकराणि च । दिव्यान्यमृतकल्पानि सुस्वादुरसवन्ति च ।। ४ ।। उन्निसवें अध्याय में, उत्सव वेंकटनाथ । वैभव अकथ अनन्त हैं, वर्णित सब विधि साथ ।। १ ।। उत्सवदान निवासफल, वर्णित प्रभुगुणगान ।। २ ।। महोत्सव वैभव वर्णन श्री सूतजी ने बोले-श्रीब्रह्माजी ने वेङ्कटेश के दिव्य महोत्सव के दिनों में अनेक प्रकार के भोज्य पदार्थ-घी, दाल, गुडादिकों के विचित्र-विचित्र नैवेद्य अनेकों भांड धी, दूध, दही, गुड का भात, पायसान्न मुंग की खिचडी, तिल का भात, धानभात, मिरवभात, गेहूँ का मात, उद्दीड का भात, मीठा भात ऐसे ही ची से परिपूर्ण अनेक प्रकार के भात तथा बहुत प्रकार के अन्न, भांति-भांति के विविध फल तया मन्-सन्तोषकर तरकारियाँ आदि स्वादिष्ट रसदार पदार्ये चढ़ाए । (१-४)