२२४ प्रमाणवचनादीना वर्णानुक्रमणिका विकास्य वर्णहीनेन ८४ सा 6-202 विशेषात् स्वस्य वशस्य ४१ पार सं विघ्नायुतेन गोविन्दे ९३ वि क 74-94 10-376 विचारोव्यसन जप १४८ विशेषाश्च मुनिश्रेष्ठ १७ ना विज्ञानादिभावे वा २ शा मी 2-2-41 विशेषेण जपेन्मन्त्र १५२ ना मु विज्ञाय विष्णवे तस्मै १५३ व 455 विशेषेण स्वयव्यक्ते १७ पार स (प्र) विज्ञाय तत्त्वमेतेषा ६६ व्या स्मृ 2-75 विषयत्यागिनस्तेषा १४० वि ध 99-15 वित्तहानि विशेषेण १८ पार स (प्रा) विषयान्तर्निविष्ट तु ६४ सा सं 6-203 19 557 विषुवायनद्वितयपञ्चदशी १५०, १६८ विदितनिगमसीम्रा १८० पा र का वि विद्यागुरुष्वनन्येषु ७४ पू विष्णवेऽथ नमस्कुर्या ९५ पार सं 2-8 विद्धि सिद्धान्तसज्ञं च ६ पौ स 38-294 विष्णुगङ्गासमं तीर्थ १०३ विद्धयनर्थान्तरा एव २५ म भा (आश्व) (स्मृतिरन्नाकारे) 104-89 विष्णु ब्रह्मण्यदेवेति ९७ वि ध 69-109 विधानमेकमूर्तीयं १४७ सा स 2-13 (म भा आनु 142-59) विधियज्ञाज्जपयज्ञ १०९ अ ब्र (ना) विष्णुब्रह्मा च रुद्रश्च ६६ यो या विधुरो ब्रह्मचारी च १६८ विष्णुस्थानसमीपस्थान् १२१ व पु 45 विधूय चेम निर्वेदं ९० व 29 विष्णोर्विभूतिमहिम ५ स वि 23 विना मूर्तिचतुष्केण ६ पौ स 38-298 विष्ण्वङ्घ्रतोयपाने च ११७ विना विविधसंपर्कै १०५ पार स 2-64 विहित नार्चन कुर्यात् १५ पा सं(च) विनियुक्तावशिष्टस्य १२३ 21-52 विनिष्क्रम्यान्निशालाया १२४ व 87 विहितान्यर्चने नित्यं १२८ सा 21-30 विपरीते कृते चात्र १९ पार सं 19-582 विहिता पादशौचे तु १०० पार स विप्रतिषेधाच्च २ शा मी 2-2-42 2-53 विप्रान् वेदविद शुद्धान् २२ भार्ग विविधाना राजसाना ४० पार स वी 10-330 वीक्षमाणस्तमेवैनं १५८ वं 501 विशत्यपास्तदोषस्तु १६३ वि वर्म (शौ) 103-16 वृ विशेषत सकामस्य १२८ सा स 21-31 वृत्तखाध्यायसंपन्नस्य १७०, घटिकाव्यवस्था विशेष नाचरेत् किंचित् १९, २०, ३४. का वृत्तान्तमखिल कालं ९३. सा खं 7-123
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