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पृष्ठम्:श्रीपाञ्चरात्ररक्षा.djvu/२८७

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222 प्रमाणवचनादीना वर्णानुक्रमणिका यानैर्वा पादुकैर्वापि १२२ येनास्य पितरो याता ७७ म 4-178 यान् कृ वा योग्यता यान्ति ११८ व पु 45 ये भजन्ति जगद्योनि १०४ इ स 25-20

यामद्वय शयानो हि ७६, ८१, ८२ द स्मृ यो 2-59 योक्तव्यानि पवित्राणि १२८ सा स यामले मातृतन्त्रे च २६ का त (कामि ) 21-29 1-122 योग नयति यो मोहात् १५. पा स (च) यामन्या पादमेक तु १६२ 21-76 या मूर्तिर्येन तन्त्रेण १६ पा स (च) योग निशावसाने च ४८ ज 22-73 17-29 योगासने समासीन १६५, पा स यायादरण्यमथवा ११८ सा स 21-25 13 767 यावज्जीन जपामीति १५१ बो योगिनामधिकार स्यात् १४६ सा स यावजीवावधि काल १७६ सा स 2-8 6-222 यो गुरौ मानुष भाव १२३ यावत्सूर्योदय दृष्टा १११ पा स योगेनाव्यभिचारिण्या ९१ भ गी 18-33 यावदाभाति भगवान् ८५ सा सं 6-211 योगेश्वर ततो मे त्व १६५, भ गी 11-4

                          योगो नामेन्द्रियैवैश्यै ५९ ३शा स्मृ
       यु                               4-220, 5-18

युक्तस्वप्नाबोधस्य ८१, ८२, १६६ भ योद्धुकामानि रक्षासि ११० सा स (च) गी 6-17, ज 33-61 13-24 युक्त श्रियादिकेनैव ६ पौ स 38-299 यो न ज्ञात्वा तु साङ्कर्यात् ४१ पार स10-375

     ये                         यो नर प्रविशेद्वेह ११८ व पु 45

ये जन्मकोटिभि सिद्धा ७ पौ स यो नारायणदासीय ५४ ना मु 38-305 योऽनेन विधिना कुर्यात् ६८ व्या स्मृ ये तु शिष्टास्रो भक्ता १३९ म भा 2-79 (शा) 350-35 यो मोहादथवालस्यात् ६६ यो या येन केनचिदेषित्रा १७७ व 509 यो यजेद्विधेिनानेन १७६, सा स 6-221 येन सिद्धान्तमार्गेण ११ पा स (च) योऽर्चयेदन्यमार्गेण १८ पार स (प्रा) 19-122 19-556