पृष्ठम्:वैशेषिकदर्शनम्.djvu/९७

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अ. १ आ. १ सू. ८

व्या-गुरुत्ववस्तु के पतन का कारण होता है, और विधा रक संयोग पतन का प्रतिबन्धक होता है । पत्थर पहाड़ की चोटी पर टिका हुआ है, क्योंकि चोटी उस को धारे हुए है, चोटी से उठा कर खडु में छोड़ दिया जाता है, तो नचेि जा गिरता है। वहां उसके पतन का कारण गुरुत्व है। फल आकाश में लटका हुआ है, क्योंकि डैडी का संयोग उस को थामे हुए है, सैयोग के नाश होते ही गुरुत्व से नीचे आ पड़ता है। इसी प्रकार मनुष्य भी दृक्ष की डाली के टूटते ही नीचे आा गिरता है । इस पतन में'मनुष्य का भी गुरुत्व कारण है, न कि प्रयत्र। हां स्वयं उतरने में प्रयत्र कारण होता है। इसी प्रकार ऊपर उठा कर छोड़ी वस्तु के गिरने में गुरुत्व कारण है, किन्तु पकड़ हुए नीचे लाने में मयत्रे कारण है । मूसल के भी अभिघात से ऊपर उछलने की हद्द तक अभिघात कारण है, और उसी हद्द 'से अपने आप गिरने में गुरुत्व कारण है। पर उस हद्द से ऊँचा ले जाने और िफर नीचें लाने में प्रयत्र कारण है। और दोनों निमित्त इकडे भी हो जाते हैं। नीचे लाने में सदा गुरुत्व और प्रयत्र दो निमित्त होते हैं, इसी लिए नीचे आसानी से आता है, ऊपर उठाने में भी पहली वार केवल प्रयत्र कारण होता है, इस लिए अधिक वल लगता है। दूसरी वार अभिघात और प्रयत्र दोनों मिल जाते हैं, इस लिए न्यून वल से उतना ही उठ जाता है । ; इं अधिक देरी में थकावट भयत्र कोदीला कर देती है ।

सै-गुरुत्व से पतन ही क्यों होता है ढेले की नई ऊपर जाना था बाण की नाई आङ्गा खाना क्यों नहीं होता ? इस का, उत्तर वैदेते हैं