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'वैशेषिक-दर्शन ।
धर्मविशेषाञ्च ॥ ७ ॥
और धर्म विशेप से ( हैं अयोनिज ) ।
व्या-आदि में उत्पन्न होने वालों का धर्मइतना उच कोटिका होता है, कि वे योनि में प्रवेश किये विना जगत् में मवेश अन्वर्थ नामों के होने से (जैसेस त्रहमा का नाम स्वयम्भू है । योनिज होता, तो स्वयम्भू नाम न होता ) ।
संज्ञाया आदित्वात् ॥ ९ ॥
संज्ञा के आदि होने से और (यह संज्ञा आदि से चली आती है, इम लिए कल्पित नहीं )
सं-सो इन हेतुओं से निश्चित है कि
सन्त्ययोनिजाः ॥-१० ।।
हैं अयोनिज (शरीर)
संस-अति दृढ़ता के लिए वेद का प्रमाण भी दिखलाते हैं
वेदलिङ्गाव ॥ १२ ॥
वेद के सामथ्र्य से भी (हैं अयोनिज )
चाक्लप्रे तेनऋषयों मनुष्यायज्ञे जाते पितरो नः पुराणे । (ऋग्र० १०। १३० । ६)
'. उस-सनातन (सृष्टि-) यज्ञ के प्रवृत्त होने पर उस ने ऋषि और मनुष्य रचे, जो हमारे पितर हैं। यह आदि में माता