अर्थात. अनेक अवयवों से बने हुए द्रव्य में समवेत हो, और हो भी पत्रिशेषः अर्थान् उद्भूत रूप हो । परमाणु के रूप का, प्रत्यक्ष इस लिए नहीं होता, कि वह अनेक द्रव्य वाले में नहीं, और दृष्टि का रूप इस लिए:प्रत्यक्ष नहीं होता, कि वइ उद्भूत (प्रकट) नहीं ।
इस से ( रूप प्रत्यक्ष में हेतु कथन से) रंस गन्ध स्पर्श में प्रत्यक्ष व्याख्या-किया गया । । च्पा-जैसे अनेक द्रव्य वाले समवेत रूप विशेष का प्रत्यक्ष होता.,. वैसे . अनेक. द्रव्य वाले में समवेत रस.विशेप, गन्ध विशेष और स्पर्श विशेष का प्रत्यक्ष होता है ।
सं-पत्थर में रस गन्घ का और चाँदनी में स्पर्श का प्रत्य-न. होने से पूर्वोक्त कार्य कारण भाव का व्यभिचार होगा, इस कां
तस्याभावादव्यभिचारः ॥.१७ ॥ . . :
इक्रे न होनें से:अव्यभिचार है (प्रत्थर में जो, रस-और गन्ध है, वे उद्भूत नहीं, और चांदनी में ब्रो. स्पर्श है, वह., उद्भूतनहीं, इसलिए:च्यभिचार नहीं) :
सैख्याः परिमाणानि पृथक्तवं सैयोगविभागौ परंवा परत्वेकर्मच रुद्रिव्यसमवायाचाक्षुषाणि११
सैख्या, परिमाण, पृथक्क, संयोग, विभाग; पंरत्वं; अपरत्व) और कनै येiरूप वालें द्रव्यों में समैवत हों,तो-चाटुंहोते हैं। . अरूपिष्वचाक्षुषाणि ॥ १२ ॥ः ! : */- ... ...