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अ. १ आ. १ सू. ८

सं-इस पूर्व-पक्ष का समाधान करते-इं-

• अहमिति शब्दस्य व्यतिरेकान्नागमिकम्।९॥

। 'अहं ? इस शब्द का अमयोग होने से आगम मात्र सिद्ध नहीं है।

व्या-आत्मा का विशेषरुप केवल 'आगमसिद्ध नहीं।

क्योंकि 'अहं-मैं ? इस शाब्द का आत्मभिन्न द्रव्यों में प्रयोग । नहीं । 'यह पृथिवी' 'यहजल' कहते हैं, 'मैं पृथिवी, मैं जल ' कोई नहीं कहता । इस से सिद्ध है, कि 'मैं ? का विषय पृथिवी आदि आठ द्रव्यों से भिन्न पदार्थ है। और 'मैं ? हर एक के प्रत्यक्षानुवभ सिद्ध है ।

यदिदृष्टमन्वक्षमहंदेवदत्तोऽहं यज्ञदत्तइति १०

यदि ज्ञान प्रत्यक्ष है, मैं देवदत्त मैं यज्ञदत्त यह

व्या-(पूर्वपक्षी) यदि 'मैं देवदत्त हूं ? 'मैं यज्ञदत्त हूँ? इत्यादि ज्ञान प्रत्यक्षहै, तो फिर अनुमान की क्या आवश्यकता है। कहते ही हैं 'प्रत्यक्षे किं प्रमाणम् ? । हाथी जब प्रत्यक्ष , सामने खड़ा है, तो उस की विघाड़ से लोग उस का अनुमान नहीं किया करत ।

दृष्ट आत्मनि लिंग एक एव दृढत्वात् प्रत्यक्षवत् प्रत्ययः ॥ ११ ॥. .

प्रत्यक्ष आत्मा में लिङ्ग होने पर दृढ़ होने से. प्रत्यक्ष की : नाई एक ही भतीति होती है।

व्या(सिद्धान्ती)‘अहं'इसमतीत से आत्मा केमत्यक्ष होने पर '" '