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अ. १ आ. १ सू. ८

उत्पन्न हो जाता है । जैसे स्थाणु का ऊँचा होना जो स्थाणु और पुरुष का सामान्य धर्म है, वह तो प्रत्यक्ष है, और वक्र होना वा खोड़ वाला होना जो स्थाणु का विशपधर्म छै, और, इाथ पाओं आदि वाला होना जो पुरुष का विशेष धर्म है, यह अप्रत्यक्ष है, और दोनों के ये जो विशेषधर्म हैं, उन की स्मृति अवश्य है, इस कारण मे संशय उत्पन्न होता है, कि यह स्थाणु हैं वा पुरूप है ।

दृष्टं च दृष्टवत् १८.

देखी हुई वस्तु देखे हुए धर्मे वाली है ।

व्या-अव मंशाय' के भेद दिखलाते हैं-संशय दो प्रकार का होता है. एक साक्षात विपय का मैदाय. दूसरा मामाण्य कें मंदाय से विषय का संशय । साक्षात विषय संशय के दो भेद हैं-एक देखी वस्तु जब देखे हुए धर्मो वाली हो, जैसे सामने वर्तमान स्थाणु दखे हुए धर्म वाला है, अर्थात् स्थाणु और पुरुष की नाई ऊचा है, इस से संशय होता है, कि यह स्थाणु है, चा पुरुप हैं। अथवा जैसे झाड़ियों के अन्दर चरते हुए पशु के सगमात्र देख कर यह संशय होता है, कि यह गौ है वा गवय है । संज्ञाय दोनों जगह साधारण धर्म से हुआ है। ' भेद दोनों , में यह है. कि पहले उदाहरण में धर्म स्थाणु भी प्रत्यक्ष है, और उस का धर्म ऊध्र्वत्व भी प्रत्यक्ष है । दूसरे में धर्म सींग तो: प्रत्यक्ष है । धर्मी प्रत्यक्ष'नहीं ।

जैसीदेखी वस्तु,न वैसी देखी होने से (संज्ञायक होती है).