वैशेषिक दर्शन ।
व्या-वस्त्र में गुलाब चैवेली आदि के भैसे फूल रक्खें जाएं, उन्हीं फूलों का गन्ध वस्त्र से आएगा । यह विलक्षण गन्ध वस्त्र के कारणगुणपूर्वक वस्त्र में नहीं आपा, इस से स्पष्ट है, कि यह गन्ध वस्त्र में स्वाभाविक नहीं, औपाधिक है। अपना नहीं, फूलों का है। फूलों के सूक्ष्म अवयव सम में रह गए हैं, जो उस प्रकार वास देते हैं ।
व्यवस्थितः पृथिव्यां गन्धः ॥ २ ॥
नियम से स्थित है पृथिवी में गन्ध ।
व्या-गन्ध पृथिवी में अवश्य रहता है, और पृथिवी में ही रहता है। इस लिये 'सुराभिवायु' इत्यादि जो वायु में गन्ध की भतीति है, वह औपाधिक है। मुगन्धित फूलों से हो कर जो वायु आता है, उस में फूलों के सूक्ष्म अवयव मिले रहते हैं, उन्हीं का गन्ध वायु में मतीत होता है । ऐसे ही जल में भी गन्ध पार्थिव अंश के सम्बन्ध से औपाधिक ही भान होता है ।
एतेनोष्णता व्याख्याता ॥ ३ ॥
इस से उष्णता व्याख्या की गई ।
तेजस उष्णता ॥ ४ ॥
तेज की उष्णता ।
व्या-यह जो पृथिवी, जल, वायु में उष्णता प्रतीत होती है, यह तेज के सम्बन्ध से उन में औपाधिक है । “स्वाभाविक उष्णता तेज में ही है।
अप्सुशीतता ॥५॥
जलों में शीतता है।