पृष्ठम्:वैशेषिकदर्शनम्.djvu/५२

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'वैशेषिक-दर्शन ।

वैशेषिक दर्शन ।

गुण है, न मन का गुण है। 'व्या-ब्द्याद, आत्मा का,गुण होता ,तो : मैं मुखाहूं, मैं दुःखी हूँ इत्यादि की नाई 'मे पृरा जाता हूँ, मैं वजाया जाता हूँ' इत्यादि अनुभव होता, पर अनुभव होता है, शंखा-पूरा, जा रहा है,वाज़ा वाज़ाया जा रहा...सो शब्द आत्मासे भिम में अनुभव होने से आत्मा का गुण नहीं । और प्रत्यक्ष होता. है, इस लिये मन का भी गुण नहीं, क्योंकि मर्न का कोई भी

ध्याउक्त रीति से. शब्द.न. स्पर्शःचालॉ.का गुण ठहरा,.

न आत्मा और मन, का गुण हुआ, तो परिशप से आकाशा का गुण,छिद्र होता है। अतएव शल्द ही, आकाश.का लिङ्ग है ।

द्रव्यत्वनित्यत्वे वायुनाळ्याख्याते,॥२८॥

द्रव्यत्व और नित्यत्व चायु से व्याख्या किये गए, . व्या-वायु को-जैसे गुण वाला होने से द्रव्य, और वायु के परमाणुकोद्रव्यूनाति होने से नित्य सिद्ध किया है। वैसे. आ-- काश भी शब्दगुण,वाला,होने .से .द्रव्यू और द्रव्य , के अना-- श्रित होने से नित्य है।

तत्त्वं,भावेन,॥२९॥,'

एक होना सत्ता से (व्याख्यात है) ।