४६ वैशेषिक दर्शन
संगीत-तब वायु का अनुमान ही कैसे हुआ, इसका उत्तर देते हैं:-
सामान्यतो दृष्टाचाविशेषः ॥१६॥
सामान्पतोष्ट से अविशेष (सिद्ध होता है)
व्या०-यद्यपि विलक्षण स्पर्श और वायु में विशेषरूप से ब्पाप्ति ग्रह (लिङ्गलिङ्गी भाव का दर्शन) नहीं हुआ, तथापि सामान्य रूप से व्याप्ति ग्रह तो है, कि गुण किसी द्रव्ष के आश्रय रहा है, और रुपर्श गुण छै, इस का आश्रय भी कोई द्रव्य अवश्य है । सो विशेषतोदृष्टलिङ्ग होता, तो लिङ्गी की विशेष रूप से सिद्धि होती। जैसे विलक्षण सग गौ के साथ विशेषतोष्ट है, इसलिए उससे गौ इस विशेष रूप में साध्य सिद्धि ऐोती है, पर स्पर्श सामान्यतोदृष्ट है, इसलिए इस से वायु इस विशेोपरुप में साध्य की सिद्धि नहीं किन्तु स्पर्श का आश्रय कोई द्रव्य है, इस सामान्य रूप में सिद्धि होती है। संगति--यदि वायुत्वेन अनुमान नहीं होता, तो उसकी वायु संशा में क्या प्रमाण है, इसका उत्तर देते हैं
तस्मादा गमिकम् ॥१७॥
इस से आगम सिद्ध है ।
व्या-जिस लिए वायुरूप से वायु की अनुमिति नहीं हुई, इसलिए वायु यह नाम आगम सिद्ध है, आनुपानिक नई ।
संज्ञाकर्म त्वस्माद्विशिष्टानां लिंगम् ॥१८॥
सैज्ञा कर्म हम से वड़ों का चिन्ह है।
प्रत्यक्षप्रवृत्तत्वत् सैज्ञाकर्मणः ॥१९॥ "