वैशेषिक दर्शन
नच दृष्टानां स्पर्श इत्यदृष्टलिंगो वायुः ॥१०॥
(यह) स्पर्ष देखे हुए (द्रव्यों) का नहीं, इसलिए यह अदृष्ट लिङ्ग वाला वायु हैं ।
व्या०-लिङ्ग दो प्रकार का होता है, दृष्ट और अदृष्ट । जिस का साध्य श्री पहले. मयक्ष देखा हो, उसको दृष्ट, और जिस का साध्य न देखा हो, उसस्रो अदृष्ट कहते हैं। विलक्षण सींग बैल का इष्ट लिङ्ग हैं, क्योंकि विलक्षण सगों समेत बैख को भयक्ष देखा हुआ है। स्पर्श वायु का अष्ट लिङ्ग हैं क्योंकि अपने स्पर्श सवि वायु को कभी भक्ष नहीं देखा । इसलिए वायु अछष्ट किङ्ग वाला हैं ।
खै०-वायु को अलग तत्व सिञ्ज करके उसका.द्वन्य होना सिद्ध करते हैं।
द्रव्पवाला न होने से द्रव्ए हैं ।
च्पा०-वायु द्रव्यवाला नहीं, अर्थात् किसी अन्य द्रव्य के आश्रय नहीं, इसलिए स्वयं द्रव्य है । याद स्वयं द्रव्य न होता, तो किसी द्रव्य को आश्रय पर होता ।
क्रियावत्वाद् गुणवत्त्वाच ॥१२॥
क्रिया वाला होने से और गुणवाळा होने से (भी द्रव्य है) सं०-स्थूल घायु के साधक नित्य वायु की सिाद्धि करते हैं
द्रव्यत्वेन नित्यत्वमुक्तम् ॥१३॥
द्रव्य चाला न होने से निसता कही है । व्पा०-स्थूळ वायु का समवापेकारण सूक्ष्म वायु द्रव्ष वाला नहीं भर्थव द्रव्य समबत नहीं, इससे उसकी नित्यता