जैसे द्रव्य गुण कर्म की कई जातियां (सामान्य विशेप) हैं, वैसे सत्ता की भी जातियां प्रतीत होतीं, पर मत्ता मव की सांझी एक जाति प्रतीत होती है, इसलिए सत्ता द्रष्प गुण कर्म से भिन्न पदार्थ है । इसी प्रकार
अनेक द्रव्यवत्वेन द्रव्यत्वमुक्तम् ॥११॥
अनेक द्रव्यों वाला होने से द्रव्यत्व कहागया ।
या०-सारे द्रव्यों में ‘द्रव्य, द्रव्य’ ऐसी अनुगत मतीति का हेतु होनेसे द्रव्यत्व भी (सत्तावत्) व्याख्पातजानना चाहिये । सामान्यविशेषाभावेन च ॥१२॥
सामान्य विशेष के अभाव से भी है ।
व्या०-पादे द्रव्यत्व द्रव्य रूप ही होता, तो द्रव्य की नाई उस में भी द्रव्ष की अवान्तर जातियां (पृथिवीत्व, जळत्व, आदि) प्रतीत होतीं । ।
गुणेषु भावाद् गुणत्वमुक्तम् ॥१३॥
(सारे) गुणे में होने से गुणत्व (सत्ता की नाई अलग ) कहा गया है । सामान्यविशेषाभावेन च ॥१४॥ सामान्य विशेष के अभाव से भी।
व्या०-गुणत्व में गुण की अवान्तर जातियों (रूपत्व, रसत्व आदि) के अभाव से गुणत्व गुण से भिन्न पदार्थ है। कर्मसु भावात् कर्मत्वमुक्तम् ॥१५॥
कांमों में होने से (कर्म से भन्नग) कर्मत्व कहागया है। -