पृष्ठम्:वैशेषिकदर्शनम्.djvu/३६

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'वैशेषिक-दर्शन ।

वैशेषिकदर्शन लेता है। और जब समानता की ओर झुकता है, तो पहले:सारी गो व्यक्तियों में समानता देखकर सबका एक नाम गौ रखता है। फिर, गौओं से ऊपर भट्ट वकरी भैस आदि में भी गौओं के साथ कोई समानता देखकर सवका एक नाम 'पशु' रखता. है । फिर इन पशुओं की भी किसी अशा में मनुष्य पक्षियों के साथ समानता देखकर सव का एक नाम प्राणा रखता है । फिर, प्राणियों. की अप्राणियों के साथ भी किसी अंशा में समा नता देखकर सब का एकनाम द्रव्य रखता है। फिर द्रव्य की भी गुण.कर्म के साथ किसी अंशा में समानता-देखकर एक नाम भाव रखता है। इस प्रकार समानता में भी उस सिरे तक पहुंच जाता है, जिस में सब वस्तुएँ आजाती हैं। जैसेस सव वस्तुओं को सद.कहते हैं, इसलिए सत्ता सव वस्तुओं में-सामान्य है ॥ का-हेतु है; और-विशेष वह घर्महै, जो व्यावृत्तबुद्धि का हेतु है। जैसे अपनी'गौ, की अलग, व्यक्ति, । सत्ता तो, सवः:में प्रतीत होती है, इसलिए सत्ता सामान्य-ही है। और गोत्व सारी गौओों, यें तो प्रतीत होता है, पर सारी वस्तुओं में भतीत नहीं होता, इसलिए गोत्व सामान्य भी है, और विशेष भी-हैं । इस तरह, सत्ता से भिन्न सारी जातियां सामान्य विशेष हैं। और अन्तिम व्यचियां निरी-विशेष हैं । इसी का अगळे स्वों में उप पादन करते हैं:

भावोऽनुवृत्तेरेव हेतुत्वात् सामान्यमेव ॥४॥