पृष्ठम्:वैशेषिकदर्शनम्.djvu/१३०

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति
१२८
'वैशेषिक-दर्शन ।

गुण होने से ( सयोग नहीं । संयोग होता है द्रव्यों का शाव्द है गुण, उस का द्रव्य के साथ संयोग नहीं घट सकता)

गुणोपि विभाव्यते ॥ १५ ॥

गुण भी (शब्द द्वाग) प्रतीत कराया जाता है (सो गुण गुण का संयोग तो सर्वथा ही असंभावित है )

निष्क्रियत्वात् ॥ १६ ॥

क्रिया हीन होने से (=संयोग क्रिया के अनन्तर होता है, शब्द में क्रिया होती ही नही, क्योंकि गुण है। और जहां अर्थ भी. क्रियाहीन हो, जैसेस आकाश, वहां दोनों के क्रिया हीन होने से सुतरां संयोग नही हो सकता ) ।

असति नास्तीति च प्रयोगात् ॥ १७ ॥

न होते हुए 'नहीं है ? ऐसा प्रयोग होने से ॥

जव घड़ा है ही नहीं, तव भी शव्द चोला जाता है, कि

  • घड़ा नहीं है ' । इस से सिद्ध है, कि शब्द का अर्थ के साथ

सैयोग वा समवाय कोई भी सम्वन्ध नहीं, जो है ही नहीं, उस के साथ सम्वन्ध क्या । अतएव

शब्दार्थावसम्बन्धौ ॥ १८ ॥

शब्द और अर्थ विना सम्वन्ध के हैं (ऐसी दशा में शब्द से अर्थ की प्रतीति नहीं होनी चाहिये, क्योंकि जो आपस में सम्बद्ध हो, उन्हीं में से एक की उपलब्धि से दूसरे की उप लाब्ध होती है )

संयोगिनो दण्डात् समवायिनो विशेषाच ॥१९॥