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अ. १ आ. १ सू. ८

मोक्ष आत्मा के कर्मों में व्याख्या. क्रिया-गया है ( पूर्व ' ५ । २ । १८)

सप्तम अध्याय-प्रथम आह्निक।

सैगति-द्रव्य कर्म की परीक्षा करके, गुणों की परीक्षा करना बाहते हुए, उन के कहे लक्षण और उद्देश का स्मरण कराते हैं

उत्ता गुणाः ॥ १ ॥

कहे हैं गुण

पृथिव्यादिरूपरसगन्धस्पर्श द्रव्यानित्यत्वाद निंत्याश् ॥ २ ॥

, . (उन में से) पृथिवी आदि के जो रूप रस गन्ध और स्पर्श हैं, वे (अपने आधार) द्रव्यों के आनित्य होने से आनित्य होते हैं ( उनं के नाश होने पर इन का नाश अवश्यम्भाद्री है)

एतेन नित्येषु नित्यत्वमुक्तम् ॥ ३ ॥

इस. मे नित्य में नित्यत्व कहा है।

या-जत्र द्रव्य के अनित्य होने-सें अनित्य होते हैं, तो नित्यद्रव्यों में द्रव्य के.नित्य होने से नित्य. होते हैं, यह कार्य सिद्ध हुआ । पर यह नियम संव में नहीं, किन्तु---

अप्सुतजसि वायौ चनित्या द्रव्यनित्यत्वांत्।४

जल, तेज और वायु में (रूप, रस, स्पर्श ) तो नित्य होते हैं, द्रव्य के नित्य होने से। और

अनित्येष्वनित्या द्रव्यानित्यत्वात् ॥ ५ ॥

अनित्य में आनित्य होते हैं, व्य के अनित्य इोने से।