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अ. १ आ. १ सू. ८

उस संझी के धर्मे को साक्षात जानता है ।

बुद्धिपूर्वो ददातिः ॥ ३ ॥

बुद्धि पूर्वक है दान

व्या-उदाहरण द्वारा बुद्धि पूर्वकता को स्पष्ट करते हैं, कि वेद में जो दान के विपय में कहा है

इदं मे ज्योतिरेमृतं हिरण्यैपक क्षेत्रात् कामदुघा मएषा । इदंधनं निदधे ब्राह्मणेषु कृण्वे पन्थां पितृषु यः स्वर्गः ( अथर्व ११ । १ । १८)

यह मेरा चमकता हुआ आयुवर्धक सुवर्ण,. क्षेत्र से आया यह मेरा पका हुआ अनाज और यह मेरी काम दुघा गौ। यह धन मैं ब्राह्मणों में स्थापन करता हूं, इस से मैं वह मार्ग बनाता हूं, जो पितरों में स्वर्ग नाम से प्रसिद्ध है ।

यहां जगत् को सुमार्ग पर चलाने वाले ब्राह्मणों को, जो दान वतलाया है, यह ऐसा बुदिपूर्वक है, जिस का कभी कोई प्रतिवाढ नहीं कर सकता । और साथ ही जो पारलौकिक फल घतलाया है, इस का अधिकार उमी को है. जो दान के पारलौकिक फल का प्रत्यक्षदर्शी है ।

तथा प्रतिग्रहः ।। ४ ।।

वैसे है (बुद्धि पृर्वक है ) मानिग्रह

व्या-भूमिष्ठा प्रतिगृह्णात्वन्तरिक्षमिदं महत् । माद्दे प्राणेन 'मात्माना मा प्रजया प्रतिगृह्य विराधिपि ( अथर्व ३ । ३० । ८) (पतिग्रहीता दान को लक्ष्य करके कहता है-) भूमि तुः