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पुटसंख्या
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श्रुतोपनिषत्क |
७१
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श्रुत्यादिबलीयस्त्वाच्च |
३२४
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श्रेष्ठश्च |
२२७
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स
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स एव तु कर्मानुस्मृति |
२६०
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संकल्पादेव तच्छूतेः |
४०४
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संज्ञातश्चेत्तदुक्तम् |
२९१
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संज्ञामूर्तिक्लृप्तिस्तु |
२३२
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संध्ये सृष्टिराह हि |
२२५
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संपत्तेरिति जैमिनि: |
८०
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संपद्याविर्भाव |
४००
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संबन्धादेवमन्यत्रापि |
२९९
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संमृतिद्युव्याप्त्यपि |
३०१
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संभोगप्राप्तिरिति |
६४
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संयमने त्वनुभूय |
२४६
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संस्कारपरामर्शात् |
११०
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सत्त्वाच्चापरस्य |
१५०
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सप्तगतेर्विशेषितत्वाच्च |
२२५
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समन्वयारम्भणात् |
३३९
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समवायाभ्युपगमाच्च |
१७२
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समाकर्षात् |
१२६
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समाध्यभावाच्च |
२१४
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समान एवं चाभेदात् |
२९८
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समाननामरूपत्वाच्च |
१०३
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समाना चासृत्युपक्रमात् |
३८०
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समाहारात् |
३३४
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समुदाय उभयहेतुके |
१७४
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सर्वत्र प्रसिद्धोप |
६०
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पुटसंख्या
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सर्वथानुपपत्तेश्च |
१८२
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सर्वथापि त एव |
३५४
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सर्वधर्मोपपत्तेश्च |
१६३
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सर्ववेदान्तप्रत्ययं |
२८५
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सर्वान्नानुमतिश्च |
३५२
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सर्वापेक्षा च यज्ञादि |
३५०
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सर्वाभेदादन्यत्रेमे |
२९२
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सर्वोपेता च तत् |
१५९
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सहकारित्वेन च |
३५४
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सहकायेन्तरवधिः |
३६१
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सांपराये तर्तव्य |
३०६
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साक्षाचोभयान्नानातू |
१३५
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साक्षादप्यविरोधं |
७९
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सा च प्रशासनात् |
८९
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सामान्यातु |
२७७
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सामीप्यातु तद्यपदेशः |
३९४
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सुकृतदुष्कृते एवेति |
२४५
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सुखविशिष्टाभि |
७०
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सुषुप्युत्कान्त्योः |
११४
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सूक्ष्मं प्रमाणतश्च |
३८१
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सूक्ष्मं तु तदर्हत्वात् |
११७
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सूचकश्च हि श्रुतेः |
२५९
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सैव हि सत्यादयः |
३१६
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सोऽध्यक्षे तदुपगम |
३७८
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स्तुतयेऽनुमतिर्वा |
३४४
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रुतुतिमात्रमुपादानात् |
३४८
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स्थानविशेषात् |
२७९
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स्थानादिव्यपदेशाश्च |
७०
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स्थित्यदनाभ्यां च |
८५
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