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सूर्य को जो रास्ते का भ्रम न हुआ अर्थात् भुलावा न पडा, इसका कारण, हाथियों पर के झण्डो को झण्डियो के हिलते रहने से, उसकी हवा से धूलि का हट जाना ही है। अर्थात् इण्डियो के, खूब् ऊपर फड़फड़ाते रहने से उसकी हवा से धूलि के हट जाने से सूर्य को साफ २ मार्ग दिखाई देता था ।
क्षोणिरेणुमिपतः सदाध्वगः स्यन्दने रचयति स्म भास्करः । |
अन्वयः
सदाघ्वगः भास्करः क्षोणिरेणुमिपतः पश्चिमाद्रिविषमस्थलीभुवां पूरणार्थम् इव स्यन्दने मृदः संग्रहं रचयति स्म ।
व्याख्या
सदा निरन्तरमध्वनि मार्गे गच्छतीति सदाध्वग: सदैव गमनशीलः पान्थ इत्यर्थः । अध्वनोनो़ऽध्वगोऽध्वन्य पान्थः पथिक इत्यपि' इत्यमरः । भास्करः सूर्यः क्षोणेः पृथिव्या रेणुर्धूलिस्तस्य मिषतो व्याजात् पृथ्वीधूलिव्याजात् पश्चिमाद्रिः पश्चिमपर्वतस्तस्य विषमा उन्नतानताः स्थल्यो भूमिभागास्तासामस्ताचस्थितगर्ताना पूरणार्थमिव भरणार्थमिव समीकरणार्थमित्यर्थः । स्यन्दने स्वरथे मृदो मृत्तिकायास्संग्रहमेकत्रीकरण रचयति स्म सम्पादयति स्म। अत्रोत्प्रेक्षालङ्कारः ।
भाषा
सदैव चलते रहने वाला सूर्य, पृथ्वी की धूलि के बहाने से मानो पश्चिमाचल अर्थात् अस्ताचल की ऊची नीची जमीन को भर कर समथल बनाने के लिये अपने रथ पर मिट्टी एकत्रित कर रहा था ।
नन्दनद्रुमनिकुञ्जपुञ्जितैः पांसुभिः कुसुमधूलिवासितैः । |
अन्वयः
सुरपांसुलाजनः कुसुमधूलिवासितैः नन्दनद्रुमनिकुञ्जपुञ्जितैः पांसुभिः चौर्यकेलिशयनोपयोगतः तुष्यति स्म ।