पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७८२

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चतुरशीतितमोऽध्यायः देवौ तस्मादजायेतामश्विनी भिषजां वरौ । नासत्यश्चैव दत्रश्च स्मृतौ द्वावश्विनाविति मार्तण्डस्य सुतावेतावष्टमस्य प्रजापतेः । तां तु रूपेण कान्तेन दर्शयामास भास्करः सा तं दृष्ट्वा तदा भार्या तुतोष च सुमोह च । यमस्तु तेन शापेन भृशं पीडितमानसः धर्मेण रञ्जयामास धर्मराजस्ततस्तु सः । सोऽलभत्कर्मणा तेन शुभेन परमद्युतिः पितॄणामाधिपत्यं च लोकपालत्वमेव च । मनुः प्रजापतिस्त्वेवं सावर्णः स महायशाः भाव्यसौ नागते तस्मिन्मनुः सार्वाणकेऽन्तरे | मेरुपृष्ठे सुरम्ये वै अद्यापि चरते प्रभुः भ्राता शनैश्चरस्तत्र ग्रहत्वं स तु लब्धवान् | त्वष्टा तु तेन रूपेण विष्णोश्चक्रमकल्पयत् ॥ महाप्रतिहतं युद्धे दानवप्रतिवारणे यवीयसी तयोर्या तु यमुना च यशस्विनी | अभवत्सा सरिच्छ्रेष्ठा यमुना लोकभाविनी यस्तु ज्येष्ठो महातेजाः सर्गो यस्य तु सांप्रतम् । विस्तरं तस्य वक्ष्यामि मनोवैवस्वतस्य ह ७६१ ॥७७ ॥७८ ॥७६ ॥८० ॥८१ ॥८२ ॥८३ ॥८४ ॥८५ से परम वैद्य दोनों अश्विनीकुमारों की उत्पत्ति हुई, जो दिव्यगुणसम्पन्न थे । वे दोनों अश्विनीकुमार नासत्य और दस्र नाम से विख्यात है ।७५-७७। ये दोनों माठवे प्रजापति मार्तण्ड के पुत्र कहे जाते है । तदनन्तर अपने मनोहर स्वरूप को भास्कर ने संज्ञा को दिखाया, पत्नी संज्ञा अपने पति के इस परम सुन्दर अभिनव स्वरूप को देखकर परम सन्तुष्ट और मोहित हुई। उधर मृण्मयी संज्ञा के उक्त शाप के कारण यमराज बहुत ही दुःखी और क्षुब्ध थे, किन्तु अपने धर्माचरण द्वारा उन्होंने सब को परम प्रसन्न किया, जिससे उनका नाम ही धर्म- राज हुआ | अपने शुभकर्मों द्वारा यम ने परम सुन्दर कान्ति प्राप्त की १७८-८०। यही नहीं, समस्त पितरों का आधिपत्य एवं लोकपालकत्व की पदवी भी उन्हें प्राप्त हुई । महान् यशस्वी सार्वाणि मनु इस प्रकार सार्वाण मन्वन्तर में प्रजापति रूप में प्रतिष्ठित होंगे । वे प्रभु सुरम्य सुमेरु के पृष्ठभाग पर आज भी तपश्चर्या में निरत है |८१-८२॥ उसी स्थान पर उनके भ्राता शनैश्चर ग्रह रूप में प्रतिष्ठित हुए । विश्वकर्मा ने सूर्य के उस खरादे हुये तेजोमयरूप से विष्णु के उस चक्र का निर्माण किया, जो युद्धस्थल में दानवों का विध्वंसक एवं महान् शक्तिशाली है |८३ | उन दोनों की छोटी यशस्विनी भगिनी जो थी, वह यमुना नाम से विख्यात हुई । जो लोक को पवित्र करनेवाली सरिताओ में श्रेष्ठ यमुना के रूप में परिणत हुई । सूर्य के उन दोनों पुत्रों में जो ज्येष्ठ पुत्र थे, उनका नाम मनु था, उन मनु का वंश आज भी पृथ्वी तल पर विद्यमान है, उसे विस्तारपूर्वक बतला रहा हूँ | महातेजस्वी, सूर्य के इन सातों देवरूप पुत्रों के जन्म विपयक इस वृत्तान्त को, जो मनुष्य सुनता फा०६६