पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६३

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४४ वायुपुराणं (+तथाऽर्वाक्स्रोतसां सर्गःसप्तमः स तु मानुषः । अष्टमोऽनुग्रहः सर्गः सार्विकस्तामसस्तु सः पञ्चैते वैकृतः सर्गाः प्राकृतास्तु त्रयः स्मृतः । प्राकृतो वैकृतश्चैव कौमारो नवमः स्मृतः ॥६४ प्राकृतास्तु त्रयः सर्गाः कृतास्ते बुद्धिपूर्वकाः)। बुद्धिपूर्वं प्रवर्तन्ते पणं ब्रह्मणस्तु ते ॥६५ विस्तारानुग्रहं सर्गे कीर्यमानं निबोधत । चतुर्धाऽवस्थितः सोऽथ सर्वभूतेषु कृत्स्नशः ॥६६ विपर्ययेण शक्त्या च तुण्या सिद्ध्या तथैव च । स्थावरेषु विपर्यासस्तिर्यग्योनिषु शक्तिता ।। सिद्धयमानो मनुष्यास्तु तुष्टिर्देवेषु कृत्स्नशः । इत्येते प्राकृतश्चैव वैकृताश्च नव स्मृताः ६८ सर्गाः परस्परस्याथ प्रकारा बहचः स्मृताःअग्रे ससर्ज वै ब्रह्म मानसानात्मनः समान् ॥६६ सनन्दनं च सनकं विद्वांसं च सनातनम् । विज्ञानेन निवृत्तास्ते वैवर्तेन महौजसः । ।७० संवृद्धाश्चैव नानात्वापविद्धत्रयोऽपि ते । असृष्ट्वैव प्रजसर्गे प्रतिसर्गं गताः पुनः ॥७९ तदा तेषु व्यतीतेषु तदन्यान्साधकांश्च तान्। मानसानसृज ब्रह्म पुनः स्थानाभिमानिनः ॥७२ अभूतसंप्लववस्थान्नामतस्तान्निबोधत । आपोऽग्निः पृथिवी वायुरन्तरितं दशस्तथा ७३ स्वर्गो देवः समुद्रांश्च नदञ्शैलान्वनस्पती । ओषधीनां तथाऽऽत्मनो ह्यात्मानो वृक्षवीरुधम् को देवसर्गे ।६२। इस प्रकार अवक् स्रोत वाले को सातवां मानुष सर्ग कहा जाता है एवं अनुग्रह सर्ग को आठवीं जा कि सात्विक और तामस के संमिश्रण से प्रादुर्भूत है ।६३। इसी प्रकार पाँच प्रकार के विकृत और तीन प्रकार के प्राकृत सर्गे बताये गये हैं । उन्ही विकृत तथा प्राकृत सग के समेत नवे कोमार सर्ग का व्याख्या की गई है (इनमे तीन प्रकार के इस प्राकृत सर्ग की बुद्धिपूर्वक सृष्टि की गई है) इस प्रकार ब्रह्म की ये छहों सृष्टियाँ बुद्धि पूर्वक ही प्रवृत्त होती है ।६४-६५। अव मै वर्णनीय उस अनुग्रह नामक सर्ग की जो समस्त प्राणियों मे चार प्रकार से पूर्णरूपेण स्थित है, विस्तृत व्याख्या वता रहा हूं, तुम लोग सुनो ।६६शक्ति, तुष्टि एवं सिद्धि के विषयं य क्रम से स्थावर सृष्टि मे विपर्यय और तिर्यक् योनियों में शक्ति का संचार हुआ है ।६ । अतः मनुष्यों में सिद्धि और देवों मे तुष्टि पूर्ण रूप से निहित है । पुनः इस प्रकार प्राकृत तथा विकृत सर्गे नव प्रकार के बताये गये है ।६८। परस्पर संबद्ध इन सम्र के बहुत से भेद कहे गये हैं । सबसे पहले वह्मा ने अपने ही समान विद्वान् सनक, सनन्दन और सनातन नामक तीन मानस पुत्रों को उत्पन्न किया । वे तीनों महातेजस्वी अपने सृष्टिविज्ञान के प्रभाव से निवृत्ति मार्ग पर अटल रहे ।६९-७०॥ नानात्व के रहस्य को जानकर वे ज्ञान सम्पन्न हो गए और पिता T की आज्ञा न मानकर प्रजोत्पत्ति से विमुख हो अन्यत्र चले गए ।७१। इस प्रकार उन कुमारों के चले जाने पर ब्रह्मा ने पुनः अपने पद का अभिमान करने वाले अन्य मानस पुत्रों को उत्पन्न किया जिन्होंने सृष्टि कार्यों में पूरा सहयोग दिया ।७२। प्रलय तक स्थित रहने, वाले स्थानाभिमानी देवों के नामों को गिना रहा हूँ सुन-जल, अग्नि, पृथिवी, वायुअन्तरिक्ष, दिशाये स्वर्ग, दिव, समुद्रनद, झील, वनस्पतियाँ, ओषधियाँआत्मा, मन, वृक्ष, वीरुध, (छोटे वृक्ष), लव, काष्ठ, मनुश्चिह्नान्तर्गतमन्थो ग. पुस्तके नास्ति