वायुपुराणम् ऋषय ऊचुः विस्तरेण पृथोर्जन्म कीर्तयस्व महामते | यथा महात्मना दुग्धा पूर्व तेन वसुंधरा यथा देवैश्च नागैश्च यथां ब्रह्मर्षिभिः सह । यथा यक्षैः सगन्धर्वैरप्सरोभिर्यथा पुरा | + यथायथा च तेर्दुग्धा विधिना येन येन च तेषां पात्रविशेषांश्च दोग्धारं क्षीरमेव च । तथा वत्सविशेषांश्च तन्नः प्रब्रूहि पृच्छताम् यस्मिश्च कारणे पाणिर्वेनस्य मथितः पुरा | क्रुद्धैर्महर्षिभिः पूर्वं तत्सर्वं कथयस्व नः ५२८ सूत उवाच वर्णयिष्यामि वो विप्राः पृथोवॅनस्य संभवम् । एकाग्राः प्रयताश्चैव शुश्रूषध्वं द्विजोत्तमाः नाशुचेर्नापि पापाय नाशिष्यायाहिताय च | वर्णयेयमिमं पुण्यं नाव्रताय कथंचन स्वयं यशस्यमायुष्यं पुण्यं वेदैश्च संमितम् | रहस्यमृषिभिः प्रोक्तं शृणुयाद्योऽनसूयकः ॥ १०१ ॥१०२ ॥१०३ ॥१०४ ॥ १०५ ॥१०६ ॥१०७ ऋषियों ने कहा—महामते मूतजी ! आप पृथु के जन्म वृत्तान्त का वर्णनं विस्तार पूर्वक कीजिये और वह समस्त वृत्तान्त बतलाइये जिस तरह उस महात्मा ने प्राचीन काल वसुन्धरा का दोहन किया । देवताओ, नागो, ब्रह्मषियों, यक्षों, गन्धर्वो तथा अप्सराओं के साथ जिस प्रकार एवं विधान से पृथ्वी का दोहन किया गया, उनके जो जो विशेष पात्र रहे, उन-उन समूहों में जो प्रमुख दोग्धा (दुहने वाला) रहा, जिस प्रकार का क्षीर हुआ, जो-जो वत्स (बछड़े ) बने सब का वर्णन हमें बतलाइये, जानने की इच्छा है । जिस कारण से प्राचीन काल में राजा वेन का हाथ मथा गया, तथा क्रुद्ध महर्षियो ने जिस कारण वशं उसे मृत्यु का शाप दिया है - वह सबै हम लोगो को वतलाइये |१०१-१०४॥ सूतजी वोले—विप्रवृन्द ! वेनपुत्र राजा पृथु के जन्म वृत्तान्त का वर्णन मै कर रहा हूँ, द्विजोत्तमगण ! आप लोग एकाग्र और शान्तचित्त हो सुनिये | यह पवित्र जीवन चरित कभी किसी अपवित्रात्मा, अशिष्य, अहितकारी एव व्रतादि से उन्मुख रहनेवाले व्यक्ति को नहीं बतलाऊँगा । ऋषियों द्वारा वर्णित यह पवित्र वृत्तान्त स्वर्ग प्रदान करनेवाला, यशोवर्द्धक, आयुप्रद, वेदसम्मत, एवं परमगोपनीय है, जो अनसूयक (कभी विसी को निन्दा न करनेवाला तथा गुण को गुण रूप में स्वीकार कर उसको प्रशंसा करनेवाला) इसे सुनता है, अथवा जो मनुष्य वेनपुत्र राजा पृथु के जन्म वृत्तान्त को ब्राह्मणों को नमस्कार कर किसी को सुनाता है, + इदमर्ध नास्ति क. पुस्तकें
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