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पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५२१

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५०० ततो यानि गलान्यूर्ध्व यजूंष्यादित्यमण्डलम् अश्वरूपाय मार्तण्डो याज्ञवल्क्याय धीमते वायुपुराणम् । तानि तस्मै ददौ तुष्टः सूर्यो वै ब्रह्मरातये || पजूंष्यधीवन्ते यानि ब्राह्मणा येन केन च । अश्वरूपाय दत्तानि ततस्ते वाजिनोऽभवन् ब्रह्महत्या तु यैश्चीर्णा चरणाच्चरकाः स्मृताः । वैशम्पायनशिष्यास्ते चरकाः समुदाहृताः इत्येते चरकाः प्रोक्ता वाजिनस्तान्निबोधत । याज्ञवल्क्यस्य शिष्यास्ते कण्ववैधेयशालिनः सध्यन्दिनश्च शापेयी विदिग्धश्चाप्य उद्दलः | तात्रायणश्च वात्स्यश्च तथा गालवशैषिरी ॥ आटवी च तथा पर्णो वोरणी सपरायणः इत्येते वाजिनः प्रोक्ता दश पञ्च च संस्मृताः । शतमेकाधिकं कृत्स्नं यजुषां वै विकल्पकाः पुत्रमध्यापयामास सुमन्तुमथ जैमिनि: | सुमन्तुश्चापि सुत्वानं पुत्रमध्यापयत्प्रभुः ॥ + सुकर्माणं सुतं सुत्वा पुत्रमध्यापयलाभुः स सहामधीत्याऽऽशु सुकर्माऽप्यथ संहिताः | प्रोवाचाथ सहत्वस्य सुकर्मा सूर्यवर्चसः अनध्यायेष्वधोयानांस्ताञ्जधान शतक्रतुः । प्रायोपवेशमकरोत्ततोऽसौ शिष्यकारणात् ॥२१ ॥२२ ॥२३ ॥२४ ॥२५ ॥२६ ॥२७ ॥२८ ॥२६ प्रतिष्ठित था उतने ही ऊपर उठ उठकर वह समस्त यजुर्वेद सूर्य मण्डल में आश्रय लेने लगा । जिससे सन्तुष्ट होकर मार्तण्ड सूर्य-देव ने सभी यजुर्वेद को अश्वरूप धारण करने वाले, ब्रह्मज्ञानी परम बुद्धिमान् याज्ञवल्क्य को प्रदान किया ।१९-२१। अश्वरूप धारण करने वाले याज्ञवल्क्य को दिये गये उस यजुर्वेद का अध्ययन करने वाले ब्राह्मण अश्वरूपधारो हुये। जिन वैशम्पायन के शिष्यों ने उनके साथ ब्रह्महत्या का अनुभव किया था, वे चरण (अनुभव करने) के कारण चरक नाम से प्रसिद्ध हुये । चरकों का वृत्तान्त वर्णन कर चुका अव याज्ञवल्ल्य के शिष्यो का जो अश्वरूपघारी थे, वृत्तान्त सुनिये । कण्व वैधेयशाली, मध्यन्दिन, शापेयी, विदिग्ध, आप्य, उद्दल, ताम्नायण, वात्स्य, गालव शेषिरी, आटवी, पर्णी, वीरणी और सपरायण - ये पन्द्रह वाजि (अश्वरूप घारी) जन कहे गये है । समस्त यजुर्वेद में एक सौ एक विकल्पक (संहिता भाग) देखे जाते है | २२-२६। जैमिनि ने अपने पुत्र सुमन्त को समस्त यजुर्वेद का अध्ययन कराया था | परम ऐश्वर्यशालो सुमन्तु ने अपने पुत्र सुत्वा को उसे पढ़ाया । प्रभृ सुत्वा ने अपने पुत्र सुकर्मा को उसकी शिक्षा दी । सुकर्मा ने इन सहस्र संहिताओं का अल्प समम में अध्ययन कर सूर्य के समान तेजस्वी अपने एक सहस्र शिष्यो को उसका अध्ययन कराया । किन्तु अनध्याय के दिन अध्ययन करने के कारण इन्द्र ने उन सभी शिष्यों का संहार कर डाला, जिससे दु.खी + इदमर्ध नास्ति ख. घ पुस्तकयोः ।