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पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५११

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४६० वायुपुराणम् ॥१२ ॥१३ ॥१४ ॥१५ ॥१६ ॥१७ ब्रह्मणा चोदितः सोऽस्मिन्वेदं व्यस्तुं प्रचक्रमे । अथ शिप्यान्स जग्राह चतुरो वेदकारणात् जैमिनि च सुमन्तुं च वैशम्पायनमेव च । पैलं तेषां चतुर्थ तु पञ्चमं लोमहर्षणम् ऋग्वेदश्रावकं पैलं जग्राह विधिवद्विजम् । यजुर्वेदप्रवक्तारं वैशम्पायनमेव च जैमिनि सामवेदार्थश्रावकं सोऽन्नपद्यत । तथैवाथर्ववेदस्य सुमन्तुमृषिसत्तमम् इतिहासपुराणस्य वक्तारं सम्यगेव हि । मां चैव प्रतिजग्राह भगवानीश्वरः प्रभुः एक आसीद्यजुर्वेदस्तं चतुर्धा व्यकल्पत् । चतुर्होत्रमभूतस्मिस्तेन यज्ञमकल्पयत् आध्यर्यवं यजुभिस्तु ऋग्भिोत्रं तथैव च । उद्गानं सामभिश्चचक्रे ब्रह्मत्वं चाप्यथर्वभिः ॥ ब्रह्मत्वमकरोद्यज्ञे वेदेनाथर्वणेन तु ततः स ऋतमुद्धृत्य ऋग्वेदं समकल्पयत् । होतृवं कल्प्यते तेन यज्ञवाहं जगद्धितम् सामभिः सामवेदं च तेनोद्गात्रमरोचयत् । राज्ञस्त्वथर्ववेदेन सर्वकर्माण्यकारयत् आख्यानैश्चाप्युपाख्यानैर्गाथाभिः कुलकर्मभिः । पुराणसंहितां चके पुराणार्थविशारदः यच्छिष्टं तु यजुर्वेद तेन यज्ञमथायुजत् । युञ्जानः स यजुर्वेद इति शास्त्रविनिश्चयः ॥१८ ॥१६ ॥२० ॥२१ ॥२२ , . द्वैपायन व्यास जी ने, जो भगवान् विष्णु के अंश कहे गये हैं. ब्रह्मा के अनुरोध पर इस वेद का विभाग किया। व्यास ने वेद का प्रचार करने के लिये अपने प्रमुख चार शिष्य बनाये, जिनके नाम हैं जैमिनि, सुमन्तु, वैशम्पायन और पैल । इन शिष्यों के अतिरिक्त लोमहर्पण नामक एक पांचवां शिष्य भी था ।९-१३। परम तेजस्वी भगवान् वेद-व्यास ने द्विजवर्य पैल को ऋग्वेद का व्याख्याता, वैशम्पायन को यजुर्वेद का, जैमिनि को सामवेद का तया ऋषिवर्य सुमन्तु को अथर्ववेद का अंगीकार किया। इतिहास और पुराण की व्याख्या के लिये उन्होंने मुझे नियुक्त किया। पहिले यजुर्वेद एक ही था, उसे पीछे चलकर चार भागों में विभक्त किया गया, इस प्रकार उसमें चातुर्होत्र की कल्पना हुई, जिससे यज्ञो का प्रचलन किया ।१४.१७। यजुर्वेद के मन्त्रों से आध्वर्यव, ऋग्वेद के मन्त्रों से हवन, सामवेद के मन्त्रो से उद्गात्र और अथववेद के मन्त्रों से ब्रह्मत्व की प्रतिष्ठा की। इस प्रकार यज्ञो मे जितने ब्रह्मकार्य है वे अथर्ववेद द्वारा प्रतिष्ठित है। तदनन्तर उन्होंने ऋचाओं का उद्धार करके ऋग्वेद का सम्पादन किया। जिसके द्वारा जगत् के कल्याण करने वाले, हवनीय पदार्थों के वाहक होताओं की कल्पना हुई। साम के स्फुट मन्त्रों के संग्रह से सामवेद का संग्रह एवं सम्पादन किया, जो उद्गात्रों ( सामवेद के गान करने वाले वटु समूह ) को विशेष रुचिकर हुआ, अथर्ववेद द्वारा राजाओं के परमावश्यक समस्त कर्मकाण्डों का विधान कराया। इसी प्रकार पुराणों के तात्पर्य को भलीभांति समझने वाले द्वैपायन ने आख्यान, उपाख्यान, गाथाओं एवं कुलाचार की परम्परा द्वारा पुराणों की विस्तृत कथाओं की रचना की ।१८-२१॥ यजुर्वेद में जो भाग शेष रहा उससे यज्ञों का विधान किया। जिसके द्वारा यज्ञो की क्रियायें