पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५०४

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एकोनषष्टितमोऽध्यायः ४८३ अवर्तत ऋषेर्यस्मान्महांस्तस्मान्महर्षयः। ईश्वराणां सुतस्स्वेत ऋषयस्तन्निबोधत ॥८३ काव्यो बृहस्पतिश्चैव कश्यपश्वोशनास्तथा । उतथ्यो वामदेवश्च अयोज्यौशिजस्तथा ॥६० कर्दमो विश्रवाः शक्तिर्जालखिल्यस्तथा धराः। इत्येत ऋषयः शोक्ता ज्ञानतो ऋषितां गताः ॥६१ ऋषिपुत्रानृषीकांस्तु गर्भात्पन्नान्निबोधत । वत्सरो नग्नहूश्चैव भारद्वाजस्तथैव च 6२ बृहद्वत्थः शरद्वांश्च अगस्त्यनौशिजस्तथा। ऋषिदीर्घतमश्चैव वृहदुक्थ शरद्वतः &३ वाजश्रवाः सुवित्तश्च सुवाग्वेषपरायणः। दधीचः शङ्कांश्चैव राजा वैश्रवणस्तथा ।। इत्येत ऋषिकाः प्रोक्तास्ते सत्यादृषितां गताः ईश्वरा ऋषिकाश्चैव ये चान्ये वै तथा स्मृता। एते मन्त्रकृतः सर्वे कृत्स्नशस्तान्निबोधत ।e५ भृगुः काव्यः प्रचेतास्तु दधीचो ह्यात्मवानपि । और्वाऽथ जमदग्निश्च विदः सारस्वतस्तथा ।e६ अद्विषेणो ह्यरूपश्च वीतहव्यः सुमेधसः। वैन्यः पृथुदवोदासः पश्श्वस्योभुत्समान्नभः ।। एकोनविंशदित्येत ऋषयो मन्त्रवादिनः &७ अङ्गिरा वेधसश्चैव भारद्वाजोऽथ बाष्कलिः। तथाऽमृतस्तथा गार्यः शेन संहृतिरेव च ६८ पुरुकुत्सोऽथ मांधात अम्बरीषस्तथैव च । युवनाश्वः पौरुकुत्सस्त्रसदस्युः सदस्युमान् ।e ॥६४ यह महान् स्वयमेव उन समस्त ऋषियों के रूप में परिणत हो कर आविर्भूत होता है अतः उन्हें महषि | कहते है, इन परमैश्वर्यं सम्पन्न ऋषियों के पुत्र अन्य ऋषियों के बारे में बतला रहा हूँ, सुनिये ।८७-८९ काव्य, वृहस्पति, कश्यप, उशना, उतथ्य, वामदेव अयोज्य, औशिज, कदंम, विश्रवा, शक्ति, वालखिल्य, धरा ये समस्त ऋषिगण अपने ज्ञान बल से ऋषिस्व को प्राप्त हुये कहे जाते है । ऋषि के पुत्र ऋषीकों को गर्भ से उत्पन्न हुआ समझिये । वत्सरनग्रहु, भारद्वाज, वृहदुस्थ, शरद्वान् अगस्त्य, ओशिज, दीर्घतमा, वृहदुक्थ, शरद्वत्, वाजश्रवा. सुवित्त, सुवक्वेप परायण ? दधीचि, शट्समन्, राजा वैश्रवण- –ये समस्त ऋषी कगण अपने सत्य के बल पर ऋषित्व को प्राप्त हुए कहे जाते हैं । इन समस्त ऋषिपुत्र ऋषीकों के अतिरिक्त अन्य जो ऐश्वर्यवान् त्रषिगण कहे गये है, वे भी मंत्रों के निर्माण करने वाले हैं, उन सब क मै बतला रहा हूँ, सुनिये 1६०-६५ भृगु, काव्य, प्रचेता, दधीचः आत्मवान् ओवं जमदग्नि विद, सारस्वतअद्विपेण, अरूप, वीतहव्य, सुमेधस वैन्य, पृथु, दिवोदास, पश्वास्य, गृत्समान् ओर नभ-ये उन्नीस मंत्रवादी ऋषि कहे गये हैं ।€ ६-8७। अंगिरस, वेधस्, भारद्वाज, वाष्कलि, अमृत, गाग्र्यं, शनी, संहृति, पुरुकुत्स मांधाता, अम्बरीष, युवनाश्वपौरुकुसश्रसदस्यु, सदस्युमान्, ऋहाथै अजमीढऋषभवलि, पृषदश्व. विरूप, कण्व, मुगल, उसध्य, भरद्वाज, वाजश्रवा, आयाप्य, सुवित्तिक, यमदेव औगज, वृहदुक्थ, दीवंतपा,