( २५ ) ही कहा गया है । श्रीषेण, आर्यभट तथा विष्णुचन्द्र के विषय में संक्षेरूप से पहले लिख चुके हैं ! इलाहाबाद विश्वविद्यालय के रसायन विभाग के अध्यक्ष डाक्टर सत्य प्रकाश जी डी. एस. सी महोदय का मैं अत्यन्त अनुगृहीत हूं, जिन्होंने आंगल भाषा में इस ग्रन्थ की प्रस्तावना लिख कर कृतार्थ किया । सम्पादक मण्डल के अन्य सहयोगी ज्योतिषाचार्य श्री मुकुन्दमिश्र, श्री विश्वनाथ झा, श्री दयाशंकर दीक्षित एवं श्री ओोंदत्तशम शास्त्री एम. ए. एम. ओील. भी धन्यवाद के पात्र हैं जिनके सहयोग के बिना इस महान् ग्रन्थ का सम्पादन अति कठिन था । नव प्रिंटर्स पद्म श्री प्रकाशन के स्वामी श्री रमेशचन्द्र जी का परिश्रम भी सराहनीय है। इसके अतिरिक्त उन सभी लोगों के प्रति मैं अपना हार्दिक आभार प्रदर्शन करता हूं जिन्होंने अल्पमात्र भी सहयोग देकर मुझे कृतार्थ किया । भृगु-आश्रम ३०-३-१९६६ } विदुषामनुचर
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